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________________ तीर्थङ्कर चरित्र "सुनो, तुम पूर्व नव में जम्बुक थे और इसी ग्राम की वनस्थली में रहते थे । एक कृषक ने अपने खेत में चमड़े की रस्सी रख छोड़ी थी । रात्रि में वर्षा होने से वह भींज कर नरम बन गई । तुमने वह चर्मरज्जु खा ली। उसके उग्र विकार से मर कर तुम सोमदेव के पुत्र हुए। बह कृषक मर कर अपनी पुत्रवधू के उदर से पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ । वहाँ उसे जाति स्मरण ज्ञान हुआ। उसने अपने ज्ञान से जाना कि मेरी पुत्र वधू हो मेरी माता बन गई और मेरा पुत्र ही मेरा पिता हो गया है । 'अब मैं इन्हें किस सम्बोधन से पुकारूँ ?' – इस विचार से उसने मौन रहना ही पसंद किया, जो अब तक मौन ही है | यदि तुम्हें मेरी बात में विश्वास नहीं है, तो जाओ और उस किसान से पूछो। वह स्वयं बोल कर अपना वृत्तांत सुना देगा ।" ३६८ दोनों भाई और उपस्थित लोग उस किसान के घर गए और उस गूंगे कृषक को मुनिराज के पास ले आये । महात्मा ने उससे कहा, -- 'तुम अपने पूर्वभव का वृत्तांत कहो । लज्जित क्यों होते हो ? कर्म के वशीभूत हो कर जीव का पिता से पुत्र और पुत्र से पिता होना असंभव नहीं है । संसार-चक्र में जीवों के ऐसा होता ही रहता है, अनादि से होता आया है ।" इतना कहने पर भी कृषक नहीं बोला, तो मुनिश्री ने उसका पूर्वभव सुनाया । सत्य वर्णन सुन कर कृषक प्रसन्न हुआ और मौन छोड़ कर मुनिराज को वन्दन- नमस्कार किया और अपना पूर्वभव कह सुनाया । कृषक की बात और मुनिराज का उपदेश सुन कर उपस्थित लोगों में से कई विरक्त हो कर सर्वविरत बने और कई ने श्रावक-धर्मं स्वीकार किया । कृषक भी धर्म के संमुख हुआ । किन्तु अग्निभूति और वायुभूति पर विपरीत प्रभाव पड़ा । वे लोगों के द्वारा उपहास्य के पात्र बने । उनकी द्वेषाग्नि भड़की । वे अपमानित हो कर लौट गए और रात के अन्धेरे में, मुनिराज को मारने के लिए खड्ग ले कर आये । सुमन यक्ष ने उन्हें स्तंभित कर दिया । प्रातःकाल जब लोगों ने उन्हें इस स्थिति में देखा तो उनकी सभी ने भर्त्सना को । उनके माता-पिता और परिवार रोने और अकन्द करने लगे | उस समय यक्ष ने प्रकट हो कर कहा- पापी रात को मुनिराज को मारने के लिये आये थे । इसलिए मैंने इन्हें यहाँ स्तंभित कर दिया । अब ये इन महात्मा से क्षमा माँग कर शिष्यत्व स्वीकार करें, तो इन्हें मुक्त किया जा सकता है । अन्यथा ये अपने कुकृत्य का फल भोगते रहें ।" यक्ष की बात सुन कर वे दोनों भाई बोले " 'हमसे श्रमण-धर्म का पालन नहीं हो सकता। हम श्रावकधर्म का पालन करेंगे ।" यक्ष ने उन्हें छोड़ दिया । वे दोनों श्रावकधर्म का यथाविधि पालन करने लगे, Jain Education International ➖➖➖➖➖➖ For Private & Personal Use Only — www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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