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तीर्थङ्कर चरित्र
"सुनो, तुम पूर्व नव में जम्बुक थे और इसी ग्राम की वनस्थली में रहते थे । एक कृषक ने अपने खेत में चमड़े की रस्सी रख छोड़ी थी । रात्रि में वर्षा होने से वह भींज कर नरम बन गई । तुमने वह चर्मरज्जु खा ली। उसके उग्र विकार से मर कर तुम सोमदेव के पुत्र हुए। बह कृषक मर कर अपनी पुत्रवधू के उदर से पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ । वहाँ उसे जाति स्मरण ज्ञान हुआ। उसने अपने ज्ञान से जाना कि मेरी पुत्र वधू हो मेरी माता बन गई और मेरा पुत्र ही मेरा पिता हो गया है । 'अब मैं इन्हें किस सम्बोधन से पुकारूँ ?' – इस विचार से उसने मौन रहना ही पसंद किया, जो अब तक मौन ही है | यदि तुम्हें मेरी बात में विश्वास नहीं है, तो जाओ और उस किसान से पूछो। वह स्वयं बोल कर अपना वृत्तांत सुना देगा ।"
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दोनों भाई और उपस्थित लोग उस किसान के घर गए और उस गूंगे कृषक को मुनिराज के पास ले आये । महात्मा ने उससे कहा, --
'तुम अपने पूर्वभव का वृत्तांत कहो । लज्जित क्यों होते हो ? कर्म के वशीभूत हो कर जीव का पिता से पुत्र और पुत्र से पिता होना असंभव नहीं है । संसार-चक्र में जीवों के ऐसा होता ही रहता है, अनादि से होता आया है ।"
इतना कहने पर भी कृषक नहीं बोला, तो मुनिश्री ने उसका पूर्वभव सुनाया । सत्य वर्णन सुन कर कृषक प्रसन्न हुआ और मौन छोड़ कर मुनिराज को वन्दन- नमस्कार किया और अपना पूर्वभव कह सुनाया । कृषक की बात और मुनिराज का उपदेश सुन कर उपस्थित लोगों में से कई विरक्त हो कर सर्वविरत बने और कई ने श्रावक-धर्मं स्वीकार किया । कृषक भी धर्म के संमुख हुआ । किन्तु अग्निभूति और वायुभूति पर विपरीत प्रभाव पड़ा । वे लोगों के द्वारा उपहास्य के पात्र बने । उनकी द्वेषाग्नि भड़की । वे अपमानित हो कर लौट गए और रात के अन्धेरे में, मुनिराज को मारने के लिए खड्ग ले कर आये । सुमन यक्ष ने उन्हें स्तंभित कर दिया । प्रातःकाल जब लोगों ने उन्हें इस स्थिति में देखा तो उनकी सभी ने भर्त्सना को । उनके माता-पिता और परिवार रोने और अकन्द करने लगे | उस समय यक्ष ने प्रकट हो कर कहा- पापी रात को मुनिराज को मारने के लिये आये थे । इसलिए मैंने इन्हें यहाँ स्तंभित कर दिया । अब ये इन महात्मा से क्षमा माँग कर शिष्यत्व स्वीकार करें, तो इन्हें मुक्त किया जा सकता है । अन्यथा ये अपने कुकृत्य का फल भोगते रहें ।" यक्ष की बात सुन कर वे दोनों भाई बोले
"
'हमसे श्रमण-धर्म का पालन नहीं हो सकता। हम श्रावकधर्म का पालन करेंगे ।" यक्ष ने उन्हें छोड़ दिया । वे दोनों श्रावकधर्म का यथाविधि पालन करने लगे,
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