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________________ तीर्थङ्कर चरित्र पहुंचने वाला है ।" कृष्ण को कुण्डिनपुर के गुप्त-दूत ने भी सन्देश दे दिया था । बलरामजी से परामर्श कर दोनों बन्धु अपने-अपने रथ में बैठ कर, गुप्त रूप से चले और कुण्डिनपुर के निर्दिष्ट स्थान पर पहुंचे। शिशुपाल की सेना भी आ पहुंची थी। निर्धारित समय पर रुक्मिणी अपनी बुआ और सखियों के साथ, नाग-पूजा के लिए उद्यान में पहुँची । सखियों और साथियों को वाटिका के बाहर छोड़ कर रुक्मिणी अपनी बूआ के साथ नाग-गृह में गई। उसके हाथ में पूजा की थाली थी। कृष्ण का रथ भी मंदिर के पीछे लतामण्डप की ओट में खड़ा था। रुक्मिणी को आई देख कर, कृष्ण अपने रथ में से नीचे उतरे और उनके निकट पहुंचे। उन्होंने सर्व प्रथम रुक्मिणी की बुआ को प्रणाम किया और अपना परिचय दिया । फिर रुक्मिणी की ओर देख कर कहा ____ "जिस प्रकार भ्रमर, मालती की सुगन्ध से आकर्षित हो कर आता है, उसी प्रकार में भी तुम्हारे रूप और गुणों से आकर्षित हो कर आया हूँ । आओ, मेरे साथ रथ में बैठो।" बूआजी ने आज्ञा दी और रुक्मणी बूआजी को प्रणाम कर के कृष्ण के साथ रथ में बैठ गई। जब वे लौट कर कुछ दूर चले गए. तो बूआजी ने अपने को निर्दोष बताने के लिए चिल्ला कर कहा--" बचाओ, दौड़ो। ये राम-कृष्ण, रुक्मिणी का हरण कर के ले जा रहे हैं । दौड़ों, वचाओ, रक्षा करो।" कुछ दूर जाने के बाद राम-कृष्ण ने रथ रोका और अपने पञ्चजन्य तथा सुघोष शंख फूंके, जिसे सुन कर सारा कुण्डिनपुर नगर क्षुब्ध हो गया । रुक्मिणी का हरण होना जान कर महाबली रुक्मि और शिशुपाल, सेना सहित राम-कृष्ण पर चढ़-दौड़े । भाई, शिशपाल और विशाल सेना को आते देख कर रुक्मिणी डरी और कृष्ण से कहने लगी;"हे नाथ ! मेरा भाई और शिशुपाल महाक्रूर और प्रबल पराक्रमी हैं और इनके साथ अन्य बहुत-से वीर योद्धा आ रहे हैं । इधर आप दोनों बन्धु ही हैं अपना क्या होगा ? मुझे बड़ा भय लग रहा है।" "प्रिये ! डरो मत ! वीर-बाला किसी से नहीं डरती। तुम्हारा भाई शिशुसल और यह बड़ी सेना अपना कुछ नहीं बिगाड़ सकते । यदि तुम्हें विश्वास नहीं होता हो, तो मेरी शक्ति का थोड़ा-सा नमूना देख लो।" इतना कह कर कृष्ण ने अपना अर्ध चन्द्राकार बाण, तूणीर में से निकाला। उन्होंने ताड़-वृक्ष की एक श्रेणी को एक ही प्रहार में काट गिराया और अपनी अंगूठी के रत्न को चिपटी से मसल कर चूर्ण कर दिया। पति का ऐसा अप्रतिम बल देख कर रुक्मिणी हर्षित हुई । कृष्ण ने बलराम ने कहा-- आप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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