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________________ रुक्मिणी-विवाह ३८६ --- -- - त्रिखण्डाधिपति कृष्ण की पटरानी होगी।" महात्मा की बात सुन कर मैने उनसे पूछा था कि--"हम कृष्ण को कैसे पहिचानेंगे ?" महात्माजी ने कहा--"जो समुद्र के किनारे द्वारिका नगरी बसा कर अपना राज्य स्थापित करे, वही कृष्ण होगा।" परंतु आज कृष्ण की मांग को तुम्हारे भाई ने अपमानपूर्वक ठुकरा दिया और दमघोष राजा के पुत्र शिशुपाल को तुम्हें देने की इच्छा प्रकट की। यह ठीक नहीं हुआ।" रुक्मिणी यह बात सुन कर खिन्न हो गई । कुछ काल चिन्ता-मग्न रहने के बाद पूछा "क्या महात्मा के वचन भी निष्फल होते हैं ?" -"नहीं, जिस प्रकार प्रातःकाल में हुई घन-गर्जना निष्फल नहीं जाती, उसी प्रकार महात्मा के वचन भी निष्फल नहीं होते। किंतु कुछ उपाय तो करना ही होगा।" बूआ ने गुप्त रूप से एक विश्वस्त दूत द्वारिका भेज कर कृष्ण को सन्देश दिया कि--' में माघशुक्ला अष्टमी को नागपूजा के मिस से रुक्मिणी को लेकर नगर के बाहर उद्यान में आऊँगी। हे महाभाग ! यदि आपको रुक्मिणी प्रिय हो, तो उस समय वहाँ आ कर उसे ग्रहण कर लें । अन्यथा शिशुपाल उसे ले जाएगा।" उधर राजकुमार रुक्मि ने शिशुपाल को अपनी बहिन ब्याहने के लिए बुलाया। शिशुपाल बारात ले कर, रुक्मिणी से लग्न करने के लिए जाने की तैयारी करने लगा। नारदजी, शिशुपाल के पास पहुँचे और पूछा--"यह हलचल और तैयारी क्यों हो रही है ? क्या किसी शत्रु पर चढ़ाई हो रही है ?" - "नहीं महात्मन् ! कुण्डनपुर बारात जा रही है । राजकुमारी रुक्मिणी के साथ मेरा लग्न होगा।" नारदजी आंखें मूंद कर स्तब्ध रहे और फिर पलकें उठा कर मस्तक हिलाया। शिशुपाल ने नारदजी को सिर हिलाते देख कर पूछा-- "क्यों, क्या बात है ? आपने मस्तक क्यों हिलाया?" " मुझे इस कार्य में कुछ विघ्न उत्पन्न होता दिखाई दे रहा है । सोच-समझ कर कार्य करो।" शिशुपाल बोला--" मैं विघ्न से नहीं डरता। यदि कोई बाधा उत्पन्न होगी, तो उसी समय उसका प्रतिकार किया जायगा।" - शिशुपाल ने बड़ी भारी सेना के साथ प्रयाण किया । कलह-प्रिय नारदजी द्वारिका पहुँचे । उन्होंने कृष्ण से कहा--" रुक्मिणी को ब्याहने के लिए शिशुपाल, कुण्डिनपुर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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