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कालकुमार काल के गाल में समुद्रविजयजी और कृष्ण से तिरस्कृत सोमक ने जरासंध के पास आ कर समस्त वृत्तांत सुनाया । जरासंध क्रोधाभिभूत हो गया। उसका 'कालकुमार' नामक पुत्र भी वहां उपस्थित था । वह भी यादवों और कृष्ण का अपमान-कारक व्यवहार जान कर अत्यधिक क्रोधित हो गया और रोषपूर्वक बोला
___" उन यादवों का इतना साहस कि साम्राज्य के सेवक हो कर भी अपने को स्वतन्त्र शासक मानते हैं और गर्वोन्मत्त हो कर अपना दासत्व भूल जाते हैं ? त्रिखण्डाधिपति के सामने सिर उठाने वाले उदंड भिक्षुओं को मैं नष्ट कर दूंगा। पिताश्री ! मुझे आज्ञा दीजिए । मैं उनको नष्ट कर के ही लौटूंगा । मुझ से बच कर वे इस पृथ्वी पर जीवित नहीं रह सकते । सुना है कि वे देश-त्याग कर चले गए, परन्तु में जन्हें खोज-खोज कर मारूँगा । भले ही वे कहीं जा कर छुप जायँ। मैं उन्हें जल से, थल से, आकाश से, पाताल से, समुद्र से और आग में से भी खोज निकालूंगा और उनके वंश का चिन्ह तक मिटाने के बाद ही लौटूंगा। बिना उन्हें नष्ट-विनष्ट किये मैं यहाँ नहीं आऊँगा।"
जरासंध ने आज्ञा दी। काल, अपने भाई यवन और सहदेव तथा पांच सौ राजाओं और बड़ी भारी सेना के साथ चल निकला । प्रस्थान करते हुए उसे अनेक प्रकार के अपशकुन-दुर्भाग्य सूचक निमित्त मिले। किंतु वह उनकी उपेक्षा करता हुआ आगे बढ़ता ही गया। वह यादवों के पीछे, उनके गमन-पय पर शीघ्रतापूर्वक चला जा रहा था। वह विध्याचल पर्वत के निकट पहुँच गया। यादव-संघ उसके निकट ही था। कालकुमार को भ्रम में डालने के लिए राम-कृष्ण के रक्षक देवों ने एक विशाल पवत की विकुर्वणा की, जिसका एक ही मार्ग था। कालकुमार उस पर्वत पर चढ़ा । वहाँ एक विशाल चिता जल रही थी और एक स्त्री उस चिता के पास बैठ कर करुणापूर्ण स्वर में रुदन कर रही थी। कालकुमार के पूछने पर स्त्री ने कहा;--
- “मैं यादव-कुल के विनाश से दुःखी हूँ। तुम्हारे आतंक से भयभीत हो कर यादवों ने एक विशाल चिता रच कर जल मरने के लिए अग्नि में प्रवेश किया। दशाह भी अग्नि में प्रवेश करने गये और उनके पीछे बलराम और कृष्ण भी, अभी-अभी अग्नि की भेंट हुए । कदाचित् वे अभी मरे नहीं होंगे। मुझे विलम्ब हो गया है । अब में भी अग्नि में प्रवेश करूंगी।"
इतना कह कर वह भी अग्नि में प्रवेश कर गई । काल ने देखा-राम-कृष्ण अभी मरे नहीं हैं, वे तड़प रहे हैं । दशाह भी जीवित हैं । अधिक मनुष्यों के एक साथ गिरने से अग्नि कुछ मन्द भी हो गयी थी । देवों से छला हुआ कालकुमार दशाह और राम कृष्ण
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