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सत्यभामा दांव पर लगी
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अपनी झूठी वीरता बताने के निर बोठे -"पिताजी ! मैने धनुष्य को प्रत्यंचा चढ़ा दी है।"
वसुदेवजी ने कहा--" तो तुम यहां से अभी चले जाओ, नहीं तो कंस तुम्हें मरवा डालेगा।"
पिता की बात सुन कर अनाधृष्टि डरा । वह शीघ्र ही रवाना हो कर गोकुल आया और वहाँ से अकेला सौर्यपुर चला गया ।
इसके बाद कंस ने मल्लयुद्ध का आयोजन किया। आगत राजागण भी रुक गए। वसुदेवजी ने कंस का दुष्ट आशय जान कर, सौर्यपुर दूत भेजा और अपने वीर बन्धुओं तथा अक्रूर आदि पुत्रों को भी बुला लिया-इसलिये कि कदाचित् कंस से युद्ध करने का प्रसंग उपस्थित हो जाय, तो उसकी सेना के साथ युद्ध किया जा सके ।
लयद्ध की बात सुन कर कृष्ण ने बलराम से मथरा चल कर मल्लयद्ध देखने की इच्छा व्यक्त की । बलराम ने यशोदा से कहा--" माता ! हम मथुरा जाएँगे। हमारे स्नान के लिए पानी आदि की व्यवस्था कर दो।"
यशोदा कृष्ण को मथुरा भेजना नहीं चाहती थी। इसीलिए उसने बलराम के कथन की उपेक्षा कर दी । बलराम ने कृष्ण से कहा--"यह यशोदा कुछ घमण्ड में आ कर अपना दासीपन भूल गई लगती है।" कृष्ण को यह बात अखरी । वे उदास हो गए। दोनों भाई यमुना में स्नान करने चले गए । कृष्ण को उदास देख कर बलराम ने पूछा" तुम उदास क्यों ?" कारण तो वे जानते ही थे । बोले
"भाई ! यह यशोदा तुम्हारी माता नहीं है। माता है--देवकी । तुम्हें देखने और प्यार करने के लिए प्रति मास मथुरा से यहां आती है और पिता हैं--वसुदेवजी । दुष्ट कंस के भय से तुम्हें-जन्म समय से ही--यहाँ स्थानान्तरित किया गया है । मैं कंस से तुम्हारी रक्षा करने के लिए यहां आया हुँ । मैं तुम्हारा बड़ा भाई हुँ, परन्तु मेरी माता रोहिणी देवी है । तुम मुझे अत्यन्त प्रिय हो । नन्द-यशोदा तुम्हारा निष्ठापूर्वक पालन कर रहे हैं । हमें भी इन्हें आदर देना चाहिए, फिर भी ये हैं अपने सेवक ।"
कृष्ण का समाधान तो हो गया, परन्तु कंस की दुष्टता सुन कर कृष्ण का कोप उभरा। उन्होंने कंस का वध करने की प्रतिज्ञा की । फिर स्नान करने के लिए नदी में प्रवेश किया ।
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