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________________ सत्यभामा दाँव पर लगी कंस ने अपने शत्रु और उसकी शक्ति को आँखों से देखने के लिए एक समारोह का आयोजन किया । उसने अपने शाईंग धनुष्य का उत्सव रचा और अपनी युवती कुमारिका बहिन सत्यभामा को धनुर्पुजा के लिए उसके पास बिठाया और घोषणा करवाई कि " जो पुरुष इस धनुष की प्रत्यंचा चढ़ा देगा, वही सत्यभामा को प्राप्त करेगा ।" उद्घोषणा सुन कर अनेक राजा और वीर योद्धा आये । वसुदेवजी का पुत्र और रानी मदनवेगा का आत्मज अनाधृष्टि कुमार भी अपने को समर्थ मान कर चला । मार्ग में वह गोकुल में बलराम के पास रात रहा । कृष्ण को देख कर वह प्रसन्न हुआ । मथुरा नरेश द्वारा आयोजित धनुर्प्रतियोगिता की बात सुन कर कृष्ण का मन ललचाया । अनाधृष्टि ने कृष्ण को मथुरा का मार्ग-दर्शक बना कर साथ लिया । कृष्ण मार्ग बताते हुए पैदल ही चले । वृक्षों से संकीर्ण मार्ग पर चलते हुए एक वटवृक्ष में रथ फँस गया । बहुत जोर लगाने पर भी रथ को अनाधृष्टि नहीं निकाल सका । इतने में कृष्ण ने लीलामात्र में वृक्ष को उखाड़ कर रथ को निकाल लिया । कृष्ण का अतुल पराक्रम देख कर अनाबृष्टि प्रसन्न हुआ । उसने कृष्ण का आलिंगन किया और प्रेमपूर्वक अपने पास रथ में बिठा लिया । यमुना को पार कर वे मथुरा आये ओर समारोह-स्थल गर पहुँच कर दोनों बन्धु, अन्य राजाओं के साथ मंच पर बैठ गए। सौंदर्य की देवी कमललोचना सत्यभामा, धनुष्य के समीप ही बैठी थी । सत्यभामा, कृष्ण को देख कर मोहित हो गई और अपने मन से ही उसने कृष्ण को अपना पति स्वीकार कर लिया। कई राजा अपना बल लगा चुके थे । अनावृष्टि कुमार उठा और धनुष्य को उठाने लगा, किंतु धनुष्य उठना तो दूर रहा, वह स्वयं नहीं सँभल सका और जोर लगाते समय पाँव फिसल जाने से भूमि पर गिर पड़ा। उसका मुकुट दूर जा गिरा, कुण्डल निकल पड़े और हार भी टूट गया । यह देख कर सत्यभामा का स्मित झलक आया और अन्य लोग जोर हँसने लगे । अनाधृष्टि की दुर्दशा कृष्ण से सहन नहीं हो सकी । वे तत्काल उठे और लीलामात्र में धनुष्य उठा लिया और प्रत्यंचा चढ़ा कर कुण्डलाकर बनाये हुए धनुष्य को धारण कर शोभायमान हुए । लोग कृष्ण का जयजय कार करने लगे। सभी कण्ठों से कृष्ण की प्रशमा होने लगी । कंस के आदेश से सभा तत्काल विसर्जित की गई । कंस ने अपने वैरी को आँखों से देख लिया । उसके मन में भय ने स्थायी निवास कर लिया । 1 अनाधृष्टि रथारूढ़ हो कर अपने पिता वसुदेवजी के निवास पर पहुँचा । कृष्ण को उन्होंने रथ में ही बैठे रहने दिया और आप पिता के पास पहुँचे । प्रणाम करने के बाद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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