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शत्रु की खोज और वन्दावन में उपद्रव
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भविष्यवेत्ता की चेतावनी सुन कर कंस डरा । उसने अपने अरिष्ट वृषम को गोकुल भेजा । वृषभ भयानक था। वह जिधर भी जाता, लोग दूर से देख कर ही भयभीत हो कर छुप जाते । उसने वृन्दावन का मार्ग ही उपद्रव-ग्रस्त कर के बन्द कर दिया। गोप लोग इस विपत्ति से दुःखी हो गए । गायों को वह अपने सींगों पर उठा कर दूर फेंकने लगा, किसी के घर के थंभे गिरा देता, घृत आदि के बरतन फोड़ देता और वृक्षों को अपने धक्के से उखाड़ देता । गोकुलवासी अत्यन्त दुःखी हो कर बलराम और कृष्ण को पुकारते और रक्षा की याचना करते । कृष्ण ने भयभीत गोपजनों को सान्त्वना दी और उस सांड की ओर चल दिये । उपद्रव करते हुए मस्त साँड को देख कर कृष्ण ने उसे ललकारा । कृष्ण की ललकार सुन कर साँड उछला, डकारा और प्रचण्ड बन कर, पूंछ ऊंची किये हुए कृष्ण पर झपटा । वृद्ध गोपजन, कृष्ण को चिल्ला-चिल्ला कर रोकने लगे-'लौटो कृष्ण ! लौट आओ ! बचो, अरे भागो, भागो।" कृष्ण ने किसी की नहीं सुनी और वेगपूर्वक आते हुए वृषभ के सींग पकड़ कर गर्दन ही मरोड़ दी । तत्काल ही उसका प्राणान्त हो गया। कृष्ण का महाबली, निर्मीफ और अपना रक्षक जान कर तथा विपत्ति से अपने को मुक्त समझ कर लोगों के हर्ष का पार नहीं रहा । वे उत्सव मना कर कृष्ण का अभिनन्दन करने लगे।
गोकुल और वृन्दावन के लोग संतोष की साँस ले ही रहे थे कि दूसरा उपद्रव फिर आ खड़ा हुआ -उदंड अश्व के रूप में । वह उछलता-कूदता हुआ जिधर भी निकल जाता सारा माग जन-शून्य हो जाता । वह जोर से हिनहिनाता, पाँवों की टापों से भूमि खोदता दाँतों से काटता, गायों, गवों, कुत्तों, बछड़ों और बैलों तथा छोटे-बड़े घोड़ों को काटता, टापता और मारता हुआ हाहाकार मचा रहा था। कृष्ण ने लपक कर उसके जबड़े पकड़ कर मुंह खोला और मुंह में हाथ डाल कर उसकी जीभ खींच ली। बस, उस दुष्ट घोड़े के प्राण पखेरू उड़ गए । इसके बाद वैसे ही दुष्ट गधा और मेढ़ा भी आये, परन्तु वे भी कृष्ण के हाथ से मृत्यु को प्राप्त हुए।
- अपने पाले एवं प्रचण्ड बनाये हुए सांड के मारे जाने का समाचार सुन कर ही कंस के हृदय में धस्का पड़ा। इसके बाद उसने अश्वादि भेजे । उसका सन्देह विश्वास में पलटा । वह समझ गया कि वृन्दावन का कृष्ण ही मेरा शत्रु हैं और यही देवकी का सातवां पुत्र है। उसने सोचा-- 'अभी यह किशोर है, फिर भी इतना बलवान है, तो बड़ा होने पर क्या करेगा । इसे अब शीघ्र ही समाप्त करना चाहिए।"
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