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________________ ३७२ तीर्थङ्कर चरित्र अमृतपान-सा आनन्द हुआ । चारणमुनि पधार गए । स्वप्न-पाठकों को राजा ने बहुत-सा दान दिया। रानी सुखपूर्वक गर्भ का पालन करने लगी । गर्भ-काल पूर्ण होने पर श्रावणशुक्ला पंचमी की रात्रि में चित्रा-नक्षत्र के योग में, श्याम वर्ण और शंख लांछन वाले पुत्र का जन्म हुआ । छप्पन दिशाकुमारिये आई, इन्द्र आये और विधिवत् जन्माभिषेक हुआ। राजा समुद्रविजयजी ने भी पुत्रजन्म का महा महोत्सव किया। गर्भकाल में माता ने स्वप्न में अरिष्टमय चक्रधारा देखी थी, इसलिए पुत्र का नाम 'अरिष्टनेमि' दिया गया । वसुदेवजी आदि ने भी अरिष्टनेमि कुमार का जन्मोत्सव मथुरा में किया। कुमार बढ़ने लगे। शत्रु की खोज और वृन्दावन में उपद्रव एक दिन कंस, देवकी बहिन के पास गया। उसने वहाँ उस कन्या को देखी-जिसे देवकी की सातवीं सन्तान बताया गया था और कंस ने नासिका का छेदन कर के जीवित छोड़ दिया था। कन्या को देखने पर कंस के मन में सन्देह उत्पन्न हुआ। उसने स्वस्थान आ कर भविष्यवेत्ता से पूछा-- "मुझे एक मुनि ने कहा था कि देवकी के सातवें गर्भ से तुम्हारी मृत्यु होगी । मुनि की वह भविष्यवाणी व्यर्थ हो गई क्या ? क्योंकि देवकी के सातवें गर्भ से तो एक पुत्री हुई हैं । वह मुझे क्या मारेगी ?" “नहीं, ऋषि का वचन व्यर्थ नहीं होगा। आपका शत्रु देवकी का सातवाँ पुत्र है और वह कहीं सुरक्षित रूप में बड़ा हो रहा है । पुत्री किसी अन्य की होगी। आप छले गये। मेरे विचार से आपका शत्रु विशेष दूर तो नहीं है । यदि आप अपने शत्रु को पहिचानना चाहते हैं, तो अपने अरिष्ट नामक वृषभ, केशी नामक उदंड अश्व और दुर्दान्त ऐसे गधे और मेंढ़े को वृन्दावन भेज कर खुले छोड़ दें। ये यथेच्छ विचरण करें। जो मनुष्य इसको मार डाले, वही देवकी का सातवाँ पुत्र है । मैं सोचता हूँ कि देवकी का सातवाँ पुत्र महापराक्रमी वासुदेव' होगा । उसके बल के सामने कोई भी मनुष्य नहीं टिक सकेगा। वह अपने समय का महाबली, अजेय और सार्वभोम नरेश होगा। वह महाक्रूर ऐसे कालीनाग का दमन करेगा, चाणूर मल्ल को मारेगा, पद्मोत्तर और चम्पक नामक मदोन्मत गजराज को मारेगा और आपका भी जीवन समाप्त करेगा"-भविष्यवेत्ता ने स्पष्ट कहा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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