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तीर्थङ्कर चरित्र
___ सुलसा के यहाँ आये हुए देवकी के छह पुत्रों के नाम थे--१ अनीकसेन २ अनन्तसेन ३ अजितसेन ४ अनिहतरिपु ५ देवसेन और ६ शत्रुसेन ।
कृष्ण-जन्म
छह पुत्रों के जन्म के बाद कालान्तर में देवकी रानी ने रात्रि के अन्तिम भाग में-१ सिंह २ सूर्य ३ अग्नि ४ गज ५ ध्वज ६ विमान और ७ पद्म सरोवर--ये सात महास्वप्न देखे। गंगदत्त देव का जीवx मह शुक्र देवलोक से च्यव कर देवकी के गर्भ में उत्पन्न हुआ। गर्भकाल पूर्ण होने पर भाद्रपद-कृष्णा अष्टमी की मध्य-रात्रि को श्यामवर्ण वाले एक पुत्र को जन्म दिया। यह पुत्र देवसान्निध्य से जन्मते ही शत्रुओं की दृष्टि से सुरक्षित रहा । देवों ने कंस के पहरेदारों को इस प्रकार निद्राधीन कर दिया, जैसे वे विषपान कर मूच्छित पड़े हों। देवकी ने अपने पति को बुला कर कहा ;~
"हे नाथ ! इस बालक की रक्षा करो। दुष्ट भाई ने मेरे छह पुत्रों की हत्या कर दी। अब आप किसी भी प्रकार इस लाल को यहाँ से निकालो और गोकुल में ले जा कर नन्द को सौंप दो। वह इसकी रक्षा करेगा।"
वसुदेव ने बालक को उठाया और चल दिया। पहरेदार मृतक की भाँति पड़े खर्राटे ले रहे थे । वे आगे बढ़े। भवन के द्वार अपने आप खुल गए । वर्षा की अन्धेरी गत थी । बादल छाये हुए थे वर्षा का धीमा दौर चल रहा था। देवों ने छत्र धारण कर बालक पर तान दिया। कुछ देव, दीपक धारण कर आगे चलने लगे। नगर-द्वार के समीप पहुँचने पर देवों ने परकोटे का द्वार खोल दिया । द्वार के निकट ही राजा उग्रसेनजी एक पिंजरे में बन्द थे । कंस ने उन्हें बन्दी बना कर रखा था। उन्होंने पूछा-"कौन है ?" वसुदेवजी ने कहा--
"यह कंस का शत्रु है"-उन्होंने बालक को दिखाया और कहा--" राजन् ! वह बालक आपके शत्रु का निग्रह करेगा और इसीसे आपका उद्धार होगा । आप इस बात को गुप्त ही रखें।"
-"बहुत अच्छा । आप इसे तत्काल बाहर निकालें और किसी सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दें"-उग्रसेनजी ने कहा ।
x देखो पृष्ठ ३५९ ।
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