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नन्द के गोकुल में
वसुदेवजी, बालक को ले कर नगर के बाहर निकले । आगे यमुना उग्र बाढ़ के कारण दोनों किनारे छोड़ कर, भयंकर रूप से उफनती हुई बह रही थी । बालक के प्रबल पुण्यप्रभाव और देव-सहाय से वसुदेवजी यमुना पार करने लगे। बालक का चरण-स्पर्श होते ही यमुना दो भाग में बँट गई और मार्ग बन गया। वे सकुशल नदी पार कर गोकुल में पहुंच गए और नन्द अहीर को पुत्र सौंप दिया। उसी समय नन्द की पत्नी यशोदा के भी एक पुत्री का जन्म हुआ था । नन्द ने बालक को यशोदा को सौंपा और उसकी पुत्री वसुदेव को देते हुए कहा--" आप शीघ्र जा कर इसे रानी के पास सुला दें, विलम्ब न करें।" वसुदेव ने बच्ची को ला कर देवकी के पास सुलाया और तत्काल निकल कर अपने कक्ष में पहुंच गए। इसके बाद पहरेदारों की नींद खुली । वे हड़बड़ा कर उठे ओर पता लगाने दौड़े। उन्हें ज्ञात हुआ कि 'कन्या का जन्म हुआ है।' वे उस कन्या को ले कर कस के पास पहुँचे । कन्या को देख कर कम ने सोचा--'अरे यह तो कन्या है । इससे मुझे क्या खतरा हो सकता है ? लगता है कि मुनि की वाणी केवल आक्रोश भरी और मिथ्या ही थी। अब मैं निश्चिन्त हुआ। अब व्यर्थ ही इसकी हत्या क्यों की जाय ?' फिर भी उसने उस कन्या की नासिका का एक ओर से छेदन किया और उसे देवकी के पास लौटा दी। कन्या, देवकी के ओर बालक, नन्द के संरक्षण में रह कर बढ़ने लगे । बालक का श्याम (काला) वर्ण देख कर नन्द ने उसका नाम 'कृष्ण' रख दिया। लगभग एक मास बाद देवकी ने वसुदेव से कहा; --
"स्वामिन् ! मैं पुत्र को देखना चाहती हूँ। आपकी आज्ञा हो, तो मैं गोकुल जा कर देख आऊँ।"
"प्रिये ! यदि तुम अवानक, बिना किसी उपयुक्त कारण बताये जाओगी, तो कंस को संदेह होगा और वह चौकन्ना हो कर उपद्रव खड़ा कर देगा । इसलिए कोई उपयुक्त कारण उपस्थित कर के जाओ, तो ठीक रहेगा । तुम गो-पूजा के मिस कुछ स्त्रियों के साथ गोकुल जाओ, तो सन्देह का कारण नहीं बनेगा"--वसुदेवजी ने युक्ति बताई।
देवकी, गो-पूजा के मिस से कुछ स्त्रियों को साथ ले कर गोकुल पहुँची । उसने नीलकमल के समान कांतिवाला, विकसित कमल के समान नेत्रवाला (कमल-नयन) हृदय पर श्रीवत्स के चिन्हवाला, कर-चरण में चक्रादि शुभ चिन्हवाला और निर्मल नीलमणि के समान आनन्द-दायक अपने पुत्र को यशोदा की गोद में, हँस कर किलकारी
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* यह हकीकत त्रि. श. च. में नहीं है, अन्य कथानकों से ली हैं।
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