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देवकी रानी के छह पुत्रों का जन्म और संहरण
उस समय भद्दिलपुर नगर में 'नाग' नाम का एक समृद्ध गृहपति रहता था । सुलसा उसकी स्वरूपवान् गृहिणी थी। दम्पति श्रावक-धर्म का पालन करते थे। सुलसा के विषय में उसके बचपन में किसी भविष्यवेत्ता+ ने कहा था-"यह निन्दु (मृतपुत्रा-मृतवन्ध्या) होगी।" सुलसा को यह भविष्यवाणी अखरी । उसने हरिणगमेषी देव की आराधना प्रारम्भ की । वह प्रतिदिन प्रातःकाल उठ कर स्नानादि करती और भीगी साड़ी पहिन कर हरिणगमेषी देव की प्रतिमा का पुष्पादि से विशेष प्रकार का पूजन करती और भक्तिपूर्वक प्रणिपात करने के बाद खान-पानादि करती। कालान्तर में देव प्रसन्न हुआ। सुलसा ने उससे पुत्र की याचना की । देव ने कहा :--
-"तुम मृतपुत्रा हो। तुम्हारे गभ का जीव, जीवित जन्म नहीं ले सकता । तुम्हारे गर्भ के छहों पुत्र गर्भ में ही मृत्यु प्राप्त करेंगे। किन्तु मैं तुम्हारे हित के लिए तुम्हारे गर्भ के मृत-बालकों का अन्य स्त्री के जीवित बालकों से, इस प्रकार परिवर्तन कर दूंगा कि जिसका किसी को आभास भी नहीं होगा। तुम भी नहीं जान सकोगी। तुम संतुष्ट रहो।"
देव ने अपने ज्ञान से तदनुकूल स्त्री को जाना। उसे ज्ञात हुआ कि--'कंस ने देवकी के छह गर्भ को वसुदेव से माँग लिया है। वह उन्हें मारना चाहता हैं ।' उसने सोचा-"इन जीवों का संहरण करने से इनकी रक्षा भी होगी। इनका गर्भ एवं जन्मकाल भी अनुकूल हो सकता है।" देव ने दोनों महिलाओं को समान काल में ऋतुस्नाता बनाई । दोनों समकाल में गर्भवती हुई और प्रसव भी समकाल में हुआ । देव ने निमेष मात्र में सुलसा का मृत-बालक ला कर देवकी के पास रखा और देवकी के जीवित बालक को ले जा कर सुलसा के पास रखा। इस प्रकार सुलसा के छह मृत बालकों का देवकी के जीवित बालकों से परिवर्तन हुआ।
जब कंस ने देवकी के पुत्रजन्म की बात सुनी, तो तत्काल वहाँ आया और बालक को उठा कर पत्थर पर पछाड़ दिया और मान लिया कि मैने देवकी के पुत्र की हत्या कर के अपने को, खतरे के एक निमित्त से बचा लिया। इस प्रकार छह मृत बालकों को मारने का अपना मनोरथ पूरा कर लिया। उसने यह भी नहीं देखा कि--ये जीवित हैं, या मृत ?
___ + अंतगड़ सूत्रानुसार नमेत्तिक मोर त्रि. श. पु. च. के अनुसार 'अतिमुक्त' नाम के चारण मनि ने भविष्यवाणी की थी।
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