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________________ तीर्थङ्कर चरित्र मुनि के मुंह से भयंकर भविष्य सुन कर, जीवयशा भयभीत हुई। उसका मद उतर गया। उसने मुनि को छोड़ दिया और तत्काल अपने पति के पास पहुंच कर घटित घटना कह सुनाई। देवकी के गर्भ की माँग पत्नी से अपना भविष्य सुन कर, कंस डरा । उसे विश्वास हो गया कि महात्मा का वचन सत्य हो कर रहता है, फिर भी मैं अपनी सुरक्षा का प्रयत्न करता हूँ। उसने कहा--"मैं अभी मेरे मित्र वसुदेव से देवकी के सात गर्भ माँग लेता हूँ। यदि वह मना करेगा, तो दूसरा उपाय करूँगा और स्वीकार कर लेगा, तो मैं अपने शत्रु को जन्मते ही समाप्त कर दूंगा।" ___ कंस मद-रहित स्वस्थ था, फिर भी वह मदिरा के नशे में उन्मत्त होने का ढोंग करता और झूमता-लथड़ता हुआ वसुदेव के पास पहुंचा । वसुदेव ने उसे आदर देते हुए कहा-" कहो मित्र ! आज तो बहुत प्रसन्न और मस्त लगते हो । कहो, किस इच्छा से आये हों ? मैं तुम्हारा कौनसा हित करूँ ?" --"मित्र ! आपने पहले भी जरासंध से, जीवयशा दिला कर मेरा हित किया था। अब मेरी बहिन देवकी के सात बार के गर्भ से उत्पन्न बालक मुझे दे कर, मुझ पर अनुग्रह करो। मैं अपनी बहिन के सुन्दर बालकों को अपने पास रखूगा । सात के बाद जो हों, उन्हें तुम रख लेना।" वसुदेव ने कंस की बात का मर्म नहीं समझा और वचन दे दिया। देवकी भी भाई के प्रेम को जान कर अनुमत हो गई। वह जानती थी कि " कंस की कृपा से ही उसे वसुदेव जैसा पति प्राप्त हुआ है । यदि मेरे बच्चे, भाई के पास रहें, तो क्या हानि है ?" उसने भी स्वीकार कर लिया। कंस अपने प्रयत्न में सफल हो गया। किन्तु जब वसुदेव को मुनि द्वारा बताये हुए भविष्य की बात मालूम हुई, तो वह समझ गये कि 'कंस ने मुझे ठग लिया है। उन्हें पश्चात्ताप हुआ। फिर भी उन्होंने दिये हुए वचन को पालन करने का निश्चय कर लिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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