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अतिमुक्त मुनि का भविष्य-कथन
" देवी ! आज कंस, वसुदेव को ले कर मेरे पास आया और देवकी के लग्न वसुदेव से करने का आग्रह करने लगा। परन्तु मैने 'पुत्री का विरह नहीं हो'--इस विचार से अस्वीकार कर दिया।"
राजा की बात सुन कर रानी खेदित हुई और देवकी हताश हो कर रोने लगी। रानी को नारद की सूचना ज्ञात हो गई थी। वसुदेव के प्रति अनुराग जान कर राजा ने कहा--तुम खेद क्यों करती हो ? मैं तो तुम्हारा अभिप्राय जानने के लिए ही आया हूँ। रानी ने कहा
“वसुदेव, पुत्री के योग्य वर हैं। वे पुत्री के पुण्य-बल से ही चल कर आये हैं। आप इस कार्य में विलम्ब नहीं करें।" __राजा ने मन्त्री को भेज कर कंस और वसुदेव को बुलाया और पुनः बहुमानपूर्वक मत्कार किया फिर शुभ मुहूर्त में वसुदेव और देवकी का विवाह हो गया । राजा ने दहेज में विपुल धन दिया। विशेष में दस गोकुल के अधिपति नन्द नामक अहीर को, कोटि गायों के साथ दिया। विवाहोपरान्त कंस और वसुदेवादि मथुरा आये। कंस ने अपने मित्र वसुदेव के लग्न के उपलक्ष में एक महा-महोत्सव किया।
अतिमुक्त मुनि का भविष्य-कथन
कंस के छोटे भाई ‘अतिमुक्त' थे। उन्होंने प्रवज्या ग्रहण की थी और तपस्या करते थे । उनका शरीर कृश हो गया था। वे पारणे के लिए कंस की रानी जीवयशा के भवन में आये । जीवयशा उस समय मदिरा के मद में मस्त थी। मुनि को देख कर बोली ;
"देवरजी ! अच्छा हुआ जो आज आप आये। आज देवकी के विवाह का उत्सव हो रहा है। रंग-राग और नृत्य का आयोजन है । आओ, तुम मेरे साथ नृत्य करो और गाओ।"
इस प्रकार कह कर वह अतिमुक्त मुनि के गले में बाहें डाल कर झुम गई और उनकी कदर्थना करने लगी । तब मुनि ने ज्ञानोपयोग से भविष्य देख कर कहा;--
"तू कितनी भान-भूल हो गई है । तुझे सभ्यता का भी विचार नहीं रहा । तू साधु के साथ दुर्व्यवहार कर रही है । तुझे मालूम नहीं कि तेरा भावी कितना अन्धकारमय है । जिसके लग्न का यह उत्सव मनाया जा रहा है, उस देवकी के सातवें गर्भ से उत्पन्न बालक, तेरे पति और पिता का जीवन समाप्त करने वाला होगा।"
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