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तीथंङ्कर चरित्र
सूर्पक विद्याधर ने यहां से भी उनका हरण किया और नीचे गिराया। वे गंगा नदी में गिरे । नदी से निकल कर वे कुछ यात्रियों के साथ एक पल्ली में आये और पल्लिपति की पुत्री जरा का पाणिग्रहण किया । इसके गर्भ से जराकुमार का जन्म हुआ। इसके बाद वसुदेव के अवंतीसुन्दरी, सुरसेना, नरद्वेषी, जीवयशा और अन्य राजकुमारियों के साथ लग्न हुए ।
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भ्रातृ- मिलन और रोहिणी के साथ लग्न
किसी समय वसुदेव के समक्ष एक देव ने आ कर कहा - " रुधिरा नरेश की पुत्री 'रोहिणी' तुम्हारे योग्य है । उसका स्वयंत्रर होगा। तुम वहाँ जाओ । वह तुम्हें प्राप्त होगी । तुम वहाँ पहुँच कर ढोल बजाने का काम करना । वसुदेव अरिष्टपु हुँच कर स्वयंवर में सम्मिलित हुए और ढोल बजाने लगे। देवांगना के समान अनुपम सुन्दरी रोहिणी ने स्वयंवर मण्डप में प्रवेश किया। उपस्थित राजाओं और राजकुमारों ने रोहिणी को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयत्न किया, किन्तु वह उनकी उपेक्षा करती हुई आगे बढ़ने लगी । उसे कोई भी व्यक्ति अपने अनुरूप नहीं लगा । वसुदेव ने अपने वाद्य के द्वारा रोहिणी को ऐसा सन्देश दिया : --
"हे मृगाक्षि सुन्दरी ! यहाँ आ चली आ मेरे पास में सर्वथा तेरे योग्य हूँ और तुझे चाहता हूँ। मेरी प्रीति तुझे संतुष्ट करेगी ।" रोहिणी वसुदेव के शब्द सुन कर आकर्षित हुई और देखते ही मोहित होगई उसे रोमाञ्च हो आया। उसने तत्काल वसुदेव के गले में वरमाला आरोपित कर दी 1 एक ढोली के गले में वरमाला डाल कर पति बनाना, उन प्रत्याशी राजाओं को सहन नहीं हो सका । आक्रोश भरे विभिन्न स्वर निकलने लगे । कोई कहता ;
1
" मारो इस ढोली को, जो अनधिकारी होते हुए भी राजकुमारी का पति होने का साहस कर रहा है ।"
" और इस रुधिर की धृष्टता तो देखो, कि हम सब कुलीन नरेशों को बुला कर अपमानित कर रहा है । यह दोष इसी का है। इसी ने पुत्री को ऐसी कुशिक्षा दी ". कोशला के राजा दंतवक्र ने कहा ।
+ छोटा गाँव ।
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