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________________ बसुदेव का हरण और पद्मश्री आदि से लग्न | राजा कालान्तर में निषधराज के जीव-- देव ने आकर, नल नरेश को प्रतिबोध देते हुए कहा -- " पुत्र ! अब आत्म-साधना का समय आ गया है। सावधान हो और भोग छोड़ कर त्याग मार्ग पर चलो।" उस समय जिनसेनाचार्य वहाँ बिराजते थे । वे अवधिज्ञानी आचार्य का उपदेश सुना और अपने पूर्वभव के दुष्कर्म का विवरण पूछा। श्री ने कहा--" तेने मुनि को क्षीर का दान किया था, जिसके फलस्वरूप राजऋद्धि प्राप्त की। किंतु मुनियों पर बारह घड़ी तक क्रोध किया, जिसके फलस्वरूप तुम्हें बारह वर्ष तक दुःख भोगना पड़ा। राजा सावधान हो गया और अपने पत्र पुष्कर को राज्य भार दे कर प्रव्रज्या स्वीकार कर ली। दमयंती भी प्रव्रजित हो गई। साधना करतेकरते कई वर्ष व्यतीत हो गए। एक बार नल मुनि के मन में काम विकार उत्पन्न हुआ और दमयंती पर आसक्ति हुई । आचार्य ने विकारी दशा देख कर नल मुनि का त्याग कर दिया । इस बार भी उनके पिता देव ने आ कर स्थिर किया । नल मुनि ने अनशन किया । इनके अनशन की बात जान कर सती दमयंती ने भी अनुराग वश अनशन किया ।" लोकपाल कुबेर कहने लगे--" है वसुदेव ! नल मुनि आयु पूर्ण कर कुबेर देव हुए। वह मैं हूँ और दमयंती साध्वी आयु पूर्ण कर मेरी देवी हुई। फिर वहाँ का आयु पूरा कर के यह राजकुमारी कनकवती हुई । इसके प्रति आसक्ति के कारण मैं यहाँ आया हूँ । अब तुम इसे सुखी रखना । यह इसी भव में कर्म क्षय कर मुक्त हो जायगी । वसुदेव, कनकवता से लग्न कर सुखभोग करने लगे । वसुदेव का हरण और पद्मश्री आदि से लग्न वसुदेवजी निद्रा-मग्न थे कि उनका शत्रु सूर्पक + विद्याधर आया और उनका हरण कर के ले उड़ा । सावधान होते ही वसुदेव ने मुष्टि-प्रहार कर सूर्पक की पकड़ छुटकारा पाया। वे गोदावरी नदी में गिरे । तैर कर नदी के किनारे आये और तटवर्ती नगर कोल्लाहपुर में प्रवेश किया । यहाँ भी वे पद्मरथ नरेश की पुत्री पद्मश्री के पति हुए और सुखपूर्वक रहने लगे । उनके शत्रु उन्हें मारने की ताक में थे ही। नीलकण्ठ विद्याधर ने उन्हें निद्राधीन अवस्था में उठाया और आगे चल कर आकाश में से नीचे गिरा दिया । यहाँ भी वे चम्पापुरी के निकट के सरोवर में पड़े । चम्पा के मन्त्री की पुत्री के साथ उनके लग्न हुए । + देखो पृष्ठ ३०३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only ३५५ www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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