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________________ तीर्थङ्कर चरित्र और नल का हाथ पकड़ कर सिंहासन पर बिठाया। इसके बाद वह स्वयं आज्ञाकारी के समान हाथ जोड़ कर बोला-"आप मेरे स्वामी है । आज्ञा दीजिए, मैं आपकी क्या सेवा करूं ?" दधिपर्ण भी नल नरेश को नमस्कार कर बोले--"आप मेरे स्वामी हैं । अनजान में मुस-से आपके प्रति अपराध हो गया है । मैं क्षमा चाहता हूँ।" नल नरेश ने दधिपर्ण का सम्मान करते हुए कहा-.-"राजन् ! आप तो मेरे हितैषी हैं। आपके प्रेम को मैं उसी रूप में समय सका हूँ। आप मेरी ओर से निश्चित रहें।" उत्सवों का आयोजन हुआ और बधाइ बँटने लगी। कालान्तर में धनदेव सार्थवाह, समृद्धिपूर्वक भेट ले कर भीम राजा के समीप आय । धनदेव को अपनी पुत्री दमयंती का उपकारी जान कर, बन्धु के समान सत्कार किया। पुत्री की इच्छा के अनुसार राजा ऋतुपर्ण, रानो चन्द्रवती और तापसपुर के राजा वसंतशेखर को आमन्त्रण दिया गया। भीम ने उनका स्नेहपूर्वक सत्कार किया । वे एक मास तक वहाँ आनन्दपूर्वक रहे। एक दिन वे सभी भीम गजा की सभा में बैठे थे कि एक देव प्रकट हुआ और वैदर्भी को प्रणाम कर के कहने लगा-"मैं विमलमति तापसाचार्य हूँ। आपके प्रतिबन्ध से धर्म की आराधना कर के में सौधर्म स्वर्ग में देव हुआ और आपके उपकार का स्मरण कर यहाँ आया हूँ।" देव मात कोटि स्वर्ण की वृष्टि कर के चला गया। वसंतशेखर, दधिपर्ण, ऋतपर्ण, भीम और अन्य बलवान नरेशों ने मिल कर नल का राज्याभिषेक किया और शुभ मुहूर्त में सभी राजाओं और उसकी पना सहित नल नरेश ने अयोध्या की ओर विजय-प्रयाण किया। बड़ी सेना के साप नल का आगमन सुन कर, कूबर घबड़ाया। अयोध्या पहुँच कर नल ने कृबर के पास एक दूत भेज कर गनः द्युत-क्रीड़ा के लिए आमन्त्रण दिया । कबर को युद्ध के बदले जुआ खेलना और जुए में नल को हरा कर पुन: अकिञ्चन करके निकालना सरल लगा। कूबर आमन्त्रण स्वीकार कर नल के पास पहुंचा । "पराजित, विजय पाने वाले को अपना सर्वस्व अर्पण कर देश छोड़ दे"--यह खेल की शर्त रही । नल के पुण्य का प्रबल उदय था और कूबर की पुण्य-प्रभा ढ़ल रही थी। कूबर पराजित हुआ । किंतु उदारमना महाराजा नल ने कबर को क्षमा प्रदान कर पुनः युवराज पद पर स्थापित किया। नल नरेश पुनः राज्यश्री से युक्त हो सुखभोग में जीवन व्यतीत करने लगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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