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________________ पति-पत्नी का मिलन और राज्य प्राप्ति वह भोजन बनाने की आज्ञा दीजिए । हमारी इच्छा वह भोजन करने की है। राजा ने कूबड़े को आज्ञा दी । नल ने थोड़ी ही देर में सूर्यपाक भोजन बना दिया। सभी भोजन करने बैठे । दमयंती ने भोजन का आस्वाद लेते ही समझ लिया कि यह पतिदेव का ही बनाया हुआ है । दमयंती ने पिता को बुला कर कहा "पिताजी ! मुझे एक ज्ञानी महात्मा ने कहा था कि सूर्यपाक भोजन, इस काल में भरतक्षेत्र में केवल नल नरेश ही बना सकते हैं, दूसरा कोई मनुष्य यह विद्या नहीं जानता । इसलिये मुझे विश्वास है कि यह कूबड़ा आप के जामाता ही हैं। किसी कारण से वे इस अवस्था में रहे हुए हैं। इसको एक परीक्षा यह भी है...--यदि ये मेरे पति ही होंगे, तो इनकी अंगुली के स्पर्श से मुझे रोमाञ्च हो जायगा । आप उन्हें मेरे पास भेजें और मेरे तिलक करने का कहें ।" राजा ने कूबड़े को एकान्त में बुला कर पूछा; -“तुम कौन हो, सच बताओ।" --"महाराज ! मैं जो भी हूँ, आपके सामने हूँ। इसमें छुपाने की बात ही क्या है ?" _ “नहीं, तुम कूबड़े रसोइये नहीं, नल नरेश हो।" --"नहीं, नहीं, कहां देवतुल्य नल नरेश, और कहाँ मैं दुर्भागी कूबड़ा । आप भ्रम में नहीं रहें । मैं सच ही कहता हूँ।" राजा उसे आग्रहपूर्वक अंत:पुर में ले गया और दमयंती के तिलक करने का कहा। बड़ी कठिनाई से नल ने स्वीकार किया और बहुत ही हलके हाथ से दमयंती के वक्षस्थल को स्पर्श किया । अंगुली का स्पर्श होते ही दमयंती के हृदय में सुखानुभूति हुई और वह रोमाञ्चित हो गई । दमयंती आश्वस्त हुई । उसने कहा; "प्राणेश ! वन में तो आप मुझे सोई हुई छोड़ कर भागने में सफल हो गए थे, परन्तु अब तो मैं जाग रही हूँ । आपका यह विद्रूप मुझे भुलावा नहीं दे सकता । मैं अब आपको नहीं जाने दूंगी। आज प्रातःकाल के मेरे स्वप्न ने मुझे आपका परिचय दे दिया है । सुसुमारपुर से आपको यहाँ बुलाने के लिए ही मेरे स्वयंवर का आकर्षण उपस्थित किया था । छोड़िये अब इस छद्मवेश को।" नल ने कमर खोल कर श्रीफल निकाला और उसे फोड़ कर दिव्य वस्त्र प्राप्त कर पहने तथा आभूषण धारण किये । वह अपने प्रकृत रूप में प्रकट हो गया। दमयंती के हर्ष का पार नहीं रहा। वह पति के आलिंगन में बद्ध हो गई । पत्नी के पास से चल कर नल बाहर आया। उसे देख कर भीम राजा अत्यंत प्रसन्न हो कर आलिंगन बद्ध हुआ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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