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तीर्थकर चरित्र
--"मैं बिना गिने ही इन फलों की संख्या बता सकता हूँ। लौटते समय तुम्हें यह कौतुक बताउँगा।"
-"आप समय की चिन्ता नहीं करें। मैं एक ही मुष्टिप्रहार से सभी फल गिरा दूंगा और आपको समय पर ही पहुंचा दूंगा"-नल ने कहा ।
“ मैं कहता हूँ कि सभी फल अठारह हजार हैं। अब तू अपनी कला बता।"
नल ने एक मुष्टि-प्रहार से सभी फल गिरा दिये, जो पूरे अठारह हजार निकले। दोनों एक-दूसरे की विद्या से चकित थे। राजा के आग्रह से नल ने अश्व-हृदय-प्रज्ञा विद्या प्रदान की और राजा ने संख्यापरिज्ञान विद्या नल को दी। वहां से चल कर प्रातःकाल होते ही राजा का रथ विदर्भी नगरी के निकट पहुँच गया । दधिपर्ण अत्यंत प्रसन्न हुआ।
पति-पत्नी मिलन और राज्य प्राप्ति
वैदर्भी ने रात्रि के अंतिम भाग में एक स्वप्न देखा--'निर्वृत्ति देवी, कोशला नगरी का उद्यान, आकाश-मार्ग से यहाँ ले आई । उस उद्यान में पुष्प और फल से समृद्ध एक आम्रवृक्ष भी था। देवी की आज्ञा से मैं उस वृक्ष पर चढ़ गई । देवी ने मेरे हाथ में एक विकसित कमल पुष्प दिया। मेरे वृक्ष पर चढ़ते ही उस पर बैठा हुआ पक्षी गिर कर भूमि पर पड़ा'--दवदंती ने स्वप्न का वृत्तांत पिता से कहा।
"पुत्री ! यह स्वप्न अत्यंत शुभ फल प्राप्ति का सन्मा है । निर्वृत्ति देवी के दर्शन तेरे उदय में आये हुए पुण्य-पुंज की सूचना देता है । कोशला का उद्यान यहां लाने का अर्थ है-पुनः कोशला के राज्य की प्राप्ति । आम्रवृक्ष पर तेरा चढ़ना, पति के समागम का सूचक है और पक्षी का पतन, कुबर का राज्य-भ्र होना तला रहा है। प्रातःकाल का स्वप्न तुझे आज ही अपना फल प्रदान करेगा। अब तेरी विपत्ति का अंत होने ही वाला है।"
पिता-पुत्री बातें कर ही रहे थे कि उद्यान-पालक ने आ कर निवेदन किया"महाराज दधिपर्ण नरेश आये हैं और उद्यान में ठहरे हैं । भीम राजा उसी समय उद्यान में आये और दधिपर्ण से सुहृद मित्र की भाति-आलिंगन बद्ध हो कर मिले । उनका यथोचित सत्कार किया। भीम ने कहा--"हमने सुना है कि--आपका कूबड़ा रसोइया सूर्यपाक भोजन बनाना जानता है । यदि यह बात सत्य है और वह साथ हो, तो उसे
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