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नल का गज-साधन
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" भाई ! सूर्य्यपाक भोजन तो महाराजाधिराज नल ही बना सकते है । उनके सिवाय अन्य कोई यह विद्या नहीं जानता । क्या तुम नल राजा तो नहीं हो और रूप बदल कर यहां आये हो ? परन्तु वे तो अत्यंत प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले हैं और यहाँ से दो सौ योजन दूर हैं और तो महाराजाधिराज हैं। यहां इस रूप में एकाकी नहीं आ सकते । मुझे आश्चर्य है कि तुमने यह विद्या किससे प्राप्त की और तुम कौन हो ?” 'महाराज ! में कोशल नरेश नल राजा का 'हुंडिक' नामक रसोइया हूँ । मैने यह विद्या नल नरेश से ही सीखी है । कूबर ने द्यूत में सारा राज्य जीत कर, नल को वनवासी बना दिया । उनके राज्य-त्याग के बाद में भी वहाँ से निकल गया और इधर-उधर फिरता हुआ यहाँ चला आया । कूबर मायावी और धूर्त है । वह योग्यता का आदर करने वाला नहीं है । इसलिए में वहां नहीं रहा ।" नल नरेश की दुर्दशा सुन कर राजा दुःखी हुआ और उनके गुणों का स्मरण कर रोने लगा । राजा का दुःख और रुदन देख कर, नल मन ही मन प्रसन्न हुआ और राजा के स्नेह से परिचित भी । दधिपर्ण ने इंडिक को एक लाख टंक (सिक्के) और पांच सौ गाँव दिये । नल ने गाँव स्वीकार नहीं किये, परंतु सिक्के ले लिये। राजा ने और कुछ माँगने के लिए कहा, तो नल ने कहा--' यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं, तो आपके राज्य की सीमा में से जीव हत्या और मदिरापान का सर्वथा निषेध कर दीजिए। इससे पाप मिटेगा और लोग मुखी रहेंगें ।' राजा ने उसी समय अपने राज्य में पशु-पक्षियों की हत्या और मदिरापान की निषेधाज्ञा की घोषणा करवा दी ।
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कालान्तर में दधिपूर्ण नरेश ने राज्य सम्बन्धी कार्यवश अपना दूत विदर्भ नरेश के पास भेजा । प्रसंगोपात दूत ने राजा भीम से कहा--" हमारे यहाँ एक ऐसा रसोइया आया है, जो महाराजा नल से सीखी सूर्य्यपाक भोजन बनाने की विद्या जानता है ।" यह बात दमयंती ने सुनी। उसने पिता से कहा-
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" पिता श्री ! किसी चतुर दूत को भेज कर पता लगाइये कि वह सूर्य्यपाक रसोई बनाने वाला रसोइया कैसा और कौन है ? यह विद्या आर्यपुत्र के सिवाय और कोई नहीं जानता ।"
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राजा ने एक कुशल दूत भेजा । दूत ने रसोइये के शरीर की दशा देखी, तो हताश हो गया। कुछ विचार के बाद दूत ने उस कूबड़े के सामने दो श्लोकों का उच्चारण किया, जिसमें नल नरेश की निन्दा की गई थी । उसने कहा- “संसार में जितने भी निर्दय, निर्लज्ज, निःसत्त्व और विश्वासघाती लोग हैं, उन सब में नल सर्वोपरि है जो कि अपनी स्नेहशीला
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