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तीर्थङ्कर चरित्र
सती पत्नी को भयानक वन में अकेली छोड़ कर चल दिया। समझ में नहीं आता कि उस दुष्ट का हृदय इतना कठोर और क्रूर क्यों हो गया ? उस अधम ने यह भी नहीं सोचा कि 'मुझ पर पूर्ण विश्वास रखने वाली इस पवित्र स्त्री के साथ विश्वासघात कैसे करूँ ? भयानक पशुओं से भरे इस वन में वह कैसे जीएगी ?' इस प्रकार नल की निन्दा और दमयंती करुणाजनक दशा का वर्णन सुन कर कूबड़े की छाती भर आई और वह रोने लगा । उसकी आँखों से आँसू बहने लगे । कूबड़े को रोता देख कर दूत ने पूछा ; - " तू क्यों रोता है ?" कूबड़े ने कहा--" मेरा हृदय कच्चा है । करुणा रस सुन कर मुझे रोना आता है ।" दूत ने अपने आगमन का कारण बताते हुए कहा; 'यहाँ के दूत से तुम्हारे सूर्य्यपाक भोजन बनाने की विद्या की बात सुन कर दमयंती की प्रेरणा से भीम राजा ने मुझे तुम्हें देखने भेजा। मुझे शकुन भी बहुत अच्छे हुए। किंतु तुम्हें देख कर तो मैं हताश हो गया । वे अच्छे शकुन और मेरा श्रम व्यर्थ गया । कहाँ देव समान नल नरेश और कहाँ तुम्हारा यह कूबड़ा और कुरूप शरीर ?" नल दमयंती का स्मरण कर विशेष रुदन करने लगा। उसने दूत का बहुत सत्कार किया और दधिपर्ण नरेश से पुरस्कार में प्राप्त आभूषण भी दे दिये । दूत वहाँ से चल कर कुंडिनपुर आया और यात्रा का सारा वर्णन राजा तथा दमयंती को सुना दिया। विशेष में यह भी कहा कि50 मदीन्मत्त हाथी को वश में करने के निमित्त से कूबड़े का दधिपूर्ण राजा से सम्पर्क हुआ ।” दूत की बात सुन कर दमयंती ने कहा - " पिताजी ! स्वामी का विद्रूप, विपत्ति रोग, आहारदोष अथवा वन की भयंकर वेदना से हुआ होगा, अन्यथा उनके सिवाय संसार में ऐसा कोन है जो सूर्यपाक विद्या जानता हो, गजवशीकरण में सिद्धहस्त हो और निस्पृहतापूर्वक इतना दान कर सकता हो ? ये विशेषताएँ उन्हीं में हैं । इसलिए किसी भी प्रकार उस कुब्ज को यहाँ लाना चाहिए। जिससे में उसकी इंगिनादि चेष्टाओं से परीक्षा करके वास्तविकता जान लूं ।"
दमयंती के पुनर्विवाह का आयोजन
विदर्भ नरेश राजा भीम, कूबड़े को बुलाने का उपाय सोचने लगे । उन्हें विचार हुआ--' यदि दमयंती के पुनर्विवाह का औपचारिक आयोजन किया जाय और स्वयंवर के निमित्त से तत्काल राजा दधिपर्ण को बुलाया जाय, तो काम बन सकता है । दधिपर्ण,
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