SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 360
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नल का गज-साधन ३४७ छोड़ कर मुझ पर उपकार करने यहाँ पधारे, और इतना कष्ट किया"--नल, मातापूर्वक गद्गद् हो कर बोला। --"पुत्र ! व्यसन बहुत बुरे होते हैं । इस एक व्यसन के कारण तू लाखों वर्षो सक जन-चर्चा का विषय बनता रहेगा। बीती बातों को भूल कर सावधान हो जा। कुछ काल के बाद पुनः तेरा भाग्योदय होगा। धर्म का अवलंबन कभी मत छोड़ना । धर्म ही अभ्युदय का कारण है।" -- 'पिताजी ! आपकी पुत्रवधू दमयंती कहाँ और किस दशा में है ?" देव ने दमयंती का वृत्तांत सुनाने के बाद कहा--"अब वह अपने पीहर में है । अब तू भी वनवास छोड़ कर किसी नगर में जा और अपना विपत्ति-काल वहीं पूरा कर । तू जहाँ जाना चाहे, वहाँ में तुझे पहुँचा दूं।" नल ने सुसुमार नगर पहुंचाने का कहा। देव ने उसे क्षणमात्र में सुसुमार नगर पहुँचा दिया और अपने स्थान लौट गया । नल का गज-साधन नल ने नगर में प्रवेश किया। गजशाला का एक हाथी मदोन्मत्त हो, बन्धन तुड़ा कर, नगर को आतंकित करता हुआ घूम रहा था । नागरिकजन भयभीत हो कर घरों में धुस गए थे । नगर का आवागमन रुक गया था। बाजार सुनसान थे। हस्तिवान (महावत) भी उस से छुपे हुए रहते थे। वह किसी के घर का खंभा उखाड़ता, किसी का छप्पर गिराता, बड़े-बड़े पत्थर उठा कर फेंकता, गाड़ी-रथ आदि को सूंड से पकड़ कर पछाड़ता, तोता-मरोड़ता और वृक्षों का विनाशं करता हुआ घूम रहा था। माय-भैंस आदि पशु भी उससे डर कर भाग रहे थे । कहीं कोई गधा, बकरा, बछड़ा या कुत्ता उसकी चपेट में आ जाता, तो वह उसे भी घास के पूले के समान पकड़ कर उछाल देता । मनुष्य यदि उसकी पकड़े में आ जाता, तो उसकी एक टांग, पाँव के नीचे दबाता और दूसरी टांग, संड से पकड़ कर चीर ही देता। इस प्रकार कालरूप बना हबा हाथी, सारे नगर को भयभीत कर रहा था। दधिपर्ण नरेश के हाथी को वश में करने के सारे प्रयत्न व्यर्थ गए। उन्होंने उद्घोषणा करवाई;--"यदि कोई व्यक्ति गजेन्द्र को वश में कर लेगा, तो उसे में इच्छित पुरस्कार दूंगा।" यह उद्घोषणा नल ने सुनी। उसने हाथी को पकड़ने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy