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दमयंती मौसी के घर पहुंची
दमयंती आगे बढ़ी। उसे बड़ी जोर की प्यास लग रही थी। पानी का कहीं पता नहीं चल रहा था । एक निर्जल पहाड़ी नदी (नाला) देख कर उसकी रेती में वह आगे बढ़ती चली गई. किंतु पानी का कहीं कुछ भी चिन्ह नहीं दिखाई दे रहा था । प्यास का परीषह उग्र हो गया । घबराहट बढ़ गई, तब सती ने स्थिर मन से संकल्प किया--"यदि मैं अपने धर्म में दृढ़ हूँ, निर्दोष हूँ, तो यह निर्जला नदी, सजला बन जाय ।" इतना कह कर रेती में पाद-प्रहार किया । तत्काल पानी का प्रवाह निकल कर बहने लगा । दमयंती उस शीतल और स्वादिष्ट जल का पान कर संतुष्ट हुई। फिर वह आगे बढ़ी । दुर्बलता से थकी हुई और धूप से घबराई हुई दमयंती, एक सघन वृक्ष के नीचे बैठ कर विश्राम ले रही थी। उधर से एक सार्थ के कुछ पथिक आये। उन्होंने देवी के समान सौम्यवदना सम्भ्रांत महिला को भयानक वन में देखा, तो आश्चर्य करने लगे। उन्होंने देवी से परिचय पूछा । दमयंती ने कहा--'मैं साथं से बिछुड़ी हुई वन में भटक रही हूँ। मुझे रास्ता बता दीजिये।" पथिकों ने कहा--"सूर्य अस्त हो, उसी दिशा में तापसपुर है । हमें जल ले कर अपने सार्थ में शीघ्र ही जाना है अन्यथा तुम्हारे साथ चल कर मार्ग बता देते । यदि हमारे साथ में चलना हो, तो चलो। हम तुम्हें किसी नगर में पहुंचा देंगे।" दमयंती उनके साथ चली और सार्थ में पहुंच गई । सार्थवाह धनदेव दयालु और अच्छे स्वाभाव का व्यक्ति था । उसने गती का परिचय पूछा । वैदर्भी ने कहा--"मैं अपने पति के साथ अपने पीहर जा रही थी, किन मेग वणिक-पति, मुझे सोती हुई छोड़ कर कहीं चला गया । मैं अकेली भटक रही हूँ। आप मुझे किसी नगर में पहुंचा देंगे, तो उपकार होगा।" सार्थवाह ने कहा--"बेटी ! में अचलपुर जा रहा हूँ। तुम हमारे साथ चलो। मैं तुम्हें सुखपूर्वक पहुँचा दूंगा!" दमयंती उस सार्थ के साथ सुखपूर्वक अचलपुर पहुंच गई। दमयंती को नगर के बाहर छोड़ कर, साथ अपने मार्ग पर चला । दमयंती को प्यास लगी पी। वह एक बावड़ी में पानी पीने उतरी । वहाँ एक चन्दनगोह ने आ कर उसका पांव पकड लिया । दमयंती डरी । तत्काल उसने नमस्कार महामन्त्र का स्मरण किया। इसके प्रभाव से सती का पाँव छोड़ कर गोह चला गया। जलपान कर के वंदर्भी वापिका में बाहर निकल कर वृक्ष की छाया में बैठ गई और नगर का बाह्य अवलोकन करने लगी। इतने में राज्य की दासियां पानी भरने के लिए वहाँ आई । मलिन वस्त्र और दुर्बल गात्र वाली अलौकिक सुन्दरी ऐसी दमयंती को देखी। उन्होंने सोचा---'यह कोई विपदा की मारी उच्च कुल की महिला-रत्न है।' वे लोट कर रानी से कहने लगी---" स्वामिनी !
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