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तीर्थङ्कर चरित्र
नहीं ली, जैसे मेरा निकलना उन्हें सुखकारी लगा हो । मुझे उनकी उपेक्षा से असीम क्रोध आया । उस क्रोध ही क्रोध में धधकता हुआ, सातवें दिन मर कर में उसी तपोवन में विषधर सर्प हुआ। जब तुम उधर निकली, तब मैं तुम्हें काटने के लिए तुम्हारी ओर दौड़ा । उस समय तुमने नमस्कार महामन्त्र का उच्चारण किया था। वे शब्द मेरे कानों में पड़े। मैं उसी समय रुक गया। आगे बढ़ने की मेरी शक्ति ही नहीं रही । मैं वहां से लौट कर एक गिरि-कन्दरा में रहा और मेंढ़क आदि का भक्षण करता रहा । घनघोर वर्षा के समय तुम इन तपस्वियों को धर्मोपदेश दे रही थी, वह मैंने भी सुना । मुझे अपने हिंसाप्रधान जीवन पर खेद हुआ । मेरी दृष्टि इन तपस्वियों पर पड़ी। मैने सोचा--' इन तपस्वियों को मैने कहीं देखे हैं ।' विचार करते-करते मुझे जातिस्मरण ज्ञान हुआ और मैने अपने पिछले जीवन को देखा। मुझे अपनी दुर्वृत्तियों का भान हुआ और संसार के प्रति निर्वेद हुआ । मैंने उसी समय अहिंसा व्रत स्वीकार कर अनशन कर लिया और प्रशस्त ध्यान में मृत्यु पा कर में सौधर्म देवलोक के कुसुमसमृद्ध विमान में कुसुमप्रभ देव हुआ । यह तुम्हारे वचनों का प्रभाव है । यदि तुम्हारे वचन मेरे कान में नहीं पड़े होते, तो मेरी क्या गति होती ? मैंने अवधि-ज्ञान से तुम्हें यहाँ देखा और तुम्हारे दर्शन करने चला आया । मैं आज से तुम्हारा धर्म-पुत्र हूँ
देव ने तापसों से कहा--"हे तपस्वियों
मैने पूर्वभव में तुम पर क्रोध किया था । इसके लिए मुझे क्षमा करें और अपने श्रावक व्रत में दृढ़ रह कर पालन करते रहे। देव ने गुफा में से अपना पूर्व का सर्प-शरीर बाहर निकाला और एक वृक्ष पर लटका कर कहा;
" बन्धुओं ! यह क्रोध का साक्षात् परिणाम है। यह सर्प पूर्वभव में कर्पूर ताम का तपस्वी था । इसने क्रोधरूपी अग्नि में जल कर अपनी आत्मा को इतना कलुषित बना लिया कि जिससे इसे सर्प होना पड़ा। फिर इस सती की कृपा से धर्म का आचरण किया, तो ऐसा दैविक सुख प्राप्त कर लिया। इससे आप को शिक्षा लेना चाहिए और कषायरूपी अग्नि से बच कर, धर्म रूपी शान्त सरोवर में स्नान कर, शीतल एवं पवित्र बनना चाहिए ।"
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तापस कुलपति ने संसार से पूर्ण निर्वेद या कर, केवलज्ञानी भगवान् से प्रव्रज्या प्रदान करने की प्रार्थना की। भगवान् ने कहा--"तुम्हें आचार्य यशोभद्रजी प्रव्रजित करेंगे। मैंने भी उन्हीं से प्रव्रज्या की थी ।"
कुलपति ने पूछा:- -" आपके प्रव्रजित होने का कारण क्या था ?"
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