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तीर्थकर चरित्र
को शंकास्पद बना दिया है । लगता है कि ये कुछ दिनों बाद पुनः लौटेंगे और अपना राज्य प्राप्त कर लेंगे। महर्षि का कहा हुआ भविष्य अन्यथा नहीं होता।"
इस प्रकार के उद्गार सुनता हुआ नल, नगर छोड़ कर बाहर चला गया। दमयंती का रुदन रुक ही नहीं रहा था। अश्रु-प्रवाह से उसका वस्त्र औष रथ भीग रहे थे। रथ. वन में प्रवेश कर चुका था।
नल-दमयंती का वियोग
रथ चलते-चलते भयानक वन में प्रवेश किया। नल ने दमयंती से पूछा ;"देवी ! अभी हम बिना लक्ष्य के चले जा रहे हैं। हमारा प्रवास किसी निश्चित स्थान की और नहीं है । अब हमें गंतव्य स्थान का निश्चय करना है । कहो, हम कहाँ जाएं ?"
___ "स्वामिन ! अपन कुंडिनपुर चलें। विवाहोपरान्त वहाँ जाना हुआ ही नहीं । वहां जाने पर मेरे माता-पिता प्रसन्न होंगे और अपन भी सुखपूर्वक रह सकेंगे । मेरे माता पिता पर कृपा कर वहीं पधारें।"
नल ने कुंडिनपुर की दिशा में रथ बढ़ाया । वे ज्यों-ज्यों आगे बढ़ते गए त्यों-त्यों अटवी की भयंकरता बढ़ती गई । व्याघ्र, सिंह, रीछ आदि क्रूर प्राणियों से भरपूर उम वन में तस्करों का समूह भी इधर-उधर घूम रहा था । म्लेच्छ एवं भील जाति के ऋर लोग, मद्यपान कर के नाच रहे थे । कोई ढोल बजाता, तो कोई सींग फूंक कर बजाता और कोई उछल-कूद करता । कोई मल्ल-युद्ध में संलग्न था । उन सब का काम, चोरी, लुटमार और अपहरण कर के दुर्गम वन में छुप कर निश्चित हो जाना था । नल राजा के रथ को देख कर दस्यु वर्ग प्रसन्न हुआ। वह सन्नद्ध हो कर रथ के निकट आने लगा । यह देख कर नल खड्ग हाथ में ले कर रथ से नीचे उतरा और तलवार घुमाता हुआ उस दस्यु-दल में घुस गया । दमयंती, नल के बाहुबल का पराक्रम जानती थी । वह रथ से नीचे उतरी ओर नल का हाथ पकड़ कर बोली-“ये तो बिचारे क्षुद्र पशु हैं । इनका रक्त बहाने में कोई लाभ नहीं । ये यों ही भाग जाएंगे।"
नल को रोक कर दमयन्ती एकाग्रता पूर्वक हुँ' कार करने लगी। उसके बार-बार किए हुए हुँ' कार शब्द, दस्युओं के कानों में हो कर तीक्ष्ण लोह-शलाका की भांति मर्म स्थल का भेदन करने लगे। दस्यु-दल दिग्मूढ़ बन कर पलायन कर गया । उनका पीछा
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