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नल-दमयंती आख्यान -- कुबेर द्वारा
अहीर जाति में उत्पन्न हो कर धन्य की 'धूसरी' नामक पत्नी हुई । धन्य, वन में भैंस चराने जाता । वर्षाऋतु में धन्य भैंस चराने गया । वर्षा जोरदार हो रही थी । उसने अपने बचाव के लिए छाता लगा लिया था । आगे चलते एक तपस्वी महात्मा ध्यानारूढ़ खड़े दिखाई दिये। उन पर वर्षा का पानी पड़ रहा था । शीतल वायु से शरीर काँप रहा था । धन्य के हृदय में अनुकम्पायुक्त भक्ति उत्पन्न हुई । वह तत्काल अपना छाता, महात्मा पर लगा कर खड़ा हो गया। इससे तपस्वी मुनि के परीषह में कमी हुई । वृष्टि दीर्घ काल तक होती रही और धन्य भी उसी भाव से छाता ताने खड़ा रहा। महात्मा का ध्यान पूर्ण हुआ और वर्षा रुक गई । धन्य ने मुनिराज को वन्दना - नमस्कार कर निवेदन किया, " महर्षि ! यह वर्षा लगातार सात दिन से हो रही है। आप सात दिन से यहाँ निराहार रहे। आप का शरीर अशक्त हो गया है ! आप मेरे भैंसे पर बैठें और गांव में पधारें ।" मुनिवर ने कहा; – “भद्र ! साधु तो अपने पाँवों से ही चलते हैं, किसी भी वाहन पर नहीं बैठते । हमारा अहिंसा धर्म, किसी भी जीव को किंचित् मात्र भी कष्ट देने का निषेध करता है । इसलिए में पैदल ही चलूंगा" मुनिराज और धन्य धीरे-धीरे चल कर नगर में पहुँचे | धन्य ने महात्मा से निवेदन किया; - " आप थोड़ी देर यहाँ ठहरिये, मैं भैंसों को दुह कर अभी आता हूँ ।" मुनिराज रुक गए। भैंसे दुह कर धन्य मुनिवर को पर्याप्त दूध का दान कर पारणा कराया और एक स्थान में ठहराया । वर्षा समाप्त होने पर मुनिराज वहाँ से विहार कर गए ।
धन्य अहीर अपनी पत्नी के साथ श्रावक व्रत का पालन करने लगा । कालान्तर में वे संसार का त्याग कर सर्वविरत बने और उदय भाव की विचित्रता से वे हिमवंत क्षेत्र में युगल रूप से उत्पन्न हुए। युगलिक आयु पूर्ण कर देवलोक में पति-पत्नी हुए । धन्य का जीव देवाय पूर्ण कर इस भरत क्षेत्र के कोशल देश की कोशला नगरी के इक्ष्वाकु वंशीय निषध नरेश की सुन्दरा रानी की कुक्षि में पुत्र रूप से उत्पन्न हुआ । उसका नाम 'नल' रखा गया । नल के कुबेर नाम का छोटा भाई भी था । धूसरी का जीव, देव-भव पूर्ण कर के विदर्भ देश कुण्डिन नगर के राजा भीमरथ की पुष्पदंती रानी की कुक्षि में उत्पन्न हुआ । रानी ने उस रात्रि को स्वप्न में, दावाग्नि से प्रेरित एक श्वेत वर्ण के हाथी को राजभवन में प्रवेश करते हुए देखा। रानी ने अपना स्वप्न राजा को सुनाया। राजा ने कहा
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" देवी ! कोई पुण्यात्मा तुम्हारे गर्भ में आया है ।"
राजा और रानी, भवन वाटिका में विचरण कर विनोद कर रहे थे कि एक श्वेत वर्ण का हाथी, कहीं से आ कर उनके पास खड़ा रहा और दोनों को सूंड से उठा कर
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