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________________ सूर्पक द्वारा वसुदेव का हरण ३१३ किया । अतएव में ही सोमश्री का पति हूँ। मानसवेग दुराचारी है, अनधिकारी है । इसे दुगचरण में प्रवृत्त होने का दण्ड मिलना ही चाहिए और वेगवती ने तो खुद ने मेरे साथ छलपूर्वक, सोमश्री का रूप धारण करके लग्न किये हैं। अतएव उसके लिए मुझे दोषो बताना असत्य है । वेगवती स्वयं इस दुराचारी के दुराचार की साक्षी देगी। जिस अधम ने छलपूर्वक सोमश्री का अपहरण किया हैं, वह कठोर दण्ड का पात्र है। ___न्याय वसुदेव के पक्ष में हुआ और मानसवेग झूठा सिद्ध हुआ। किन्तु उसने न्याय का आदर नहीं किया और वसुदेव से युद्ध करने के लिए तत्पर हो गया। नीलकंठा अंगारका और सूर्पक आदि भी उसके सहायक हुए। वसुदेवजी को वेगवती की माता अंगारवती ने, दिव्य धनुष और दो तूणीर दिये और प्रभावती ने प्रज्ञप्ति विद्या दी । विद्या और दिव्यास्त्र से सन्नद्ध हो कर वसुदेवजी युद्ध करने लगे। उनके उग्र पराक्रम से थोड़ी देर में ही शत्रुदल पराजित हो गया । मानसवेग को बन्दी बना कर वसुदेव ने उसे रानी सोमश्री के चरणों में डाला, किंतु अंगारवती के आग्रह से उसे बन्धन-मुक्त कर दिया । अब तो मानसवेग, वसुदेव का सेवक बन कर रहने लगा। वे सभी विमानारूढ़ हो कर महापुर आये और वहाँ सुखपूर्वक रहने लगे। सूर्पक द्वारा वसुदेव का हरण सूर्पक के मन में वसुदेव के लिए वैर की ज्वाला अब तक जल रही थी। उसने एकदिन अश्व का रूप धारण किया । आकर्षक अश्व ने वसुदेव को ललचाया। वे उस पर सवार हुए । अश्व भागा, वन में पहुंच कर तो वह उड़ने लगा। वसुदेव समझ गए कि यह किसी शत्र का षड्यन्त्र है। उन्होंने उसके मस्तक पर जोरदार प्रहार किया। अश्व ने वसुदेव को अपनी पीठ पर से नीचे गिरा दिया । सद्भाग्य से वसुदेवजी गंगानदी में गिरे। नदी पार कर के वे किनारे पर रहे हुए एक सन्यासी के आश्रम में पहुंचे। उन्होंने देखा-- आश्रम में एक स्त्री अपने गले में हड्डियों की माला क्षरण कर के खड़ी है। पूछने पर संयासी ने बताया कि 'यह स्त्री जितशत्रु शाजा की नन्दिसेना रानी और जरासंध की पुत्री है। इसे एक सन्यासी ने वशीभूत कर लिया था। उस सन्यासी को राजा ने मार डाला, किन्तु मन्त्रयोग से प्रभावित यह स्त्री, अब तक उस सन्यासी की अस्थियों को धारण करती है।" * देखो-पृ. ३..। ४ पृ. ३०२॥ पृ. २९६। . २८३ । प. ३०३। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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