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________________ ३१२ तीर्थङ्कर चरित्र देवी की बात सुन कर वसुदेवजी ने कहा-“जब में आपको स्मरण करूँ, तब अवश्य पधारें।" देवी ने वसुदेवजी की बात स्वीकार की और अपने स्थान पर चली गई। दूसरे दिन द्वारपाल के बुलाने पर वसुदेवजी प्रियंगुसुन्दरी के स्थान पर गए और वहीं गन्धर्व-विवाह कर लिया। इसके बाद अठारवें दिन द्वारपाल ने राजा को इस गन्धर्वविवाह को सूचना दी । राजा, पुत्री और जामाता को अपने साथ राज-भवन में ले आया। सोमश्री से मिलन और मानसवेग से युद्ध वंताढ्य पर्वत पर गंधसमृद्ध नाम का नगर था। गंधारपिंगल वहाँ का शासक था। उसके प्रभावती नाम की पुत्री थी । वय-प्राप्त होने पर वह देशाटन करती हुई सुवर्णाभ नगर आई । वहाँ अचानक उसकी रानी सोमश्री से मिलना हो गया । वे दोनों स्नेह-बन्धन में बन्ध गई । सोमश्री को पति-विरह से खेदित जान कर प्रभावती बोली-"सखी ! तू चिन्ता मत कर । मैं अभी जाती हूँ और तेरे पति को ले कर शीघ्र लोटूंगी। मैं वेगवती जैसी वञ्चक नहीं हूँ। तू चिन्ता छोड़ दे !" इतना कह कर वह श्रावस्ति नगरी गई और वसुदेवजी को ले आई । वसुदेषजी को मानसवेग की ओर से भय था ही। इसलिए वे सावधानी पूर्वक सोमश्री के साथ रहे । कुछ दिन बाद मानसवेंग ने वसुदेव को देखा और तत्काल उन्हें पकड़ लिया, किन्तु इससे उत्पन्न कोलाहल से आकर्षित हो कर, बई वृद्धजन वहाँ आये और उन्होंने बसुदेव को मुक्त कराया । अब वसुदेव और मानसवग के साथ सोमश्री के सम्बन्ध में विवाद होने लगा । दोनों पक्ष सोमश्री पर अपना-अपना दावा करने लगे। समाधान नहीं होने पर दोनों वहां से चल कर वैजयंती नगरी के शासक राजा बलसिह के पास, न्याय कराने के लिए बाए । वहाँ सूर्पक आदि भी पहुंच गए । मानसवेग ने कहा"सोमश्री सब से पहले मेरे मन में बसी हुई थी। मैने इसे अपनी मान लिया था, किन्तु वसुदेव ने चालबाजी से उसको प्राप्त कर लिया । अतएव सोमश्री मुझे मिलनी चाहिए। दूसरी बात यह है कि यह व्यक्ति बड़ा चालाक और धोखा-बाज है। इसने मेरी आज्ञा प्राप्त किये बिना ही छलपूर्वक मेरी बहिन वेगवती को प्राप्त कर, उसके साथ लग्न कर लिया। यह बड़ा धूत है । इसे इसकी धूर्तता का दण्ड भी मिलना चाहिए । वसुदेव ने कहा, "मैने सोमश्री के साथ लग्न किये हैं। इसके पिता और माता ने अपनी और सोमयी की इच्छा से मुझे अपने पुत्री प्रदान की है। मैने विधिवत् विवाह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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