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प्रियंगुसुन्दरी का वृत्तांत
श्रावस्ति नगरी का राजा शिलायुध हूँ। यदि तेरे पुत्र उत्पन्न हो, तो उसे ले कर मेरे पास आना । में उसे अपना उत्तराधिकारी बनाऊँगा।" इतना कह कर राजा चला गया। ऋषिदता ने पिता के आने पर राजा के आगमन का वृत्तांत सुनाया। गर्भकाल पूर्ण होने पर ऋषिदत्ता के पुत्र का जन्म हुआ । पुत्र-जन्म के बाद ऋषिदत्ता की किसी रोग से मृत्यु हो गई। वह ऋषिदत्ता मैं ही हूँ। मैं ज्वलनप्रभ नागेन्द्र की अग्रमहिषी हुई। मेरी मृत्यु से मेरे पिता, मेरे पुत्र को गोदी में ले कर रुदन करने लगे। मैं अपने पिता और पुत्र की दशा देख कर द्रवित हुई और हिरनी के रूप में पुत्र को स्तनपान कराने लगी। मेरा वह पुत्र 'एणीपुत्र' के नाम से विख्यात हुआ। वह कौशिक तापस मर कर मेरे पिता के आश्रम में ही दृष्टि-विष सर्प हुआ। उसने मेरे पिता को डस लिया। किन्तु मैने पहुँच कर विष उतारा और सर्प को बोध दिया। सर्प मेरे उपदेश से प्रभावित हुआ और शुभ भावों में आयु पूर्ण कर 'बल' नामक देव हुआ।
मैं ऋषिदत्ता का रूप धारण कर और पुत्र को ले कर श्रावस्ति नगरी के राजा शिलायुध के पास गई । किंतु शिलायुध पुत्र को नहीं पहिचान सका । मैने पुत्र को उसके पास रख दिया और स्वयं अंतरिक्ष में रह कर राजा को समझाने लगी;--
"देख राजा ! तू मृगया करते हुए आश्रम में पहुँचा था . . . . . . . उससे इस पुत्र का जन्म हुआ। इसके जन्म के बाद रोग-ग्रस्त हो कर ऋषिदत्ता मर गई और इन्द्रानी हुई । मैं वही हूँ। मैने तेरे इस पुत्र का पालन किया। स्मरण कर और अपने इस पुत्र को सम्भाल ।" - राजा की स्मृति जाग्रत हुई । उसने पुत्र को उठा कर छाती से लगाया। मैं अपने स्थान चली गई। राजा ने उसी समय पुत्र का राज्याभिषेक किया और संसार की विचित्र दशा देख कर, वैराग्य प्राप्त कर प्रवजित हो गया । वह संयम का पालन कर स्वर्गवासी देव हुआ । एणीपुत्र राजा ने सन्तान प्राप्ति के लिए तेले की तपस्या कर के मेरी आराधना की। मेरे निमित्त से उसके एक पुत्री हुई। प्रियंगुमंजरी वही है । उसने स्वयंवर में आये हुए सभी राजाओं की उपेक्षा कर दी। सभी राजाओं ने एणीपुत्र राजा पर हमला कर दिया । किन्तु मेरी सहायता से एणीपुत्र की विजय हुई और सभी राजा हार कर भाग गए। वही प्रियंगुमंजरी तुम पर आसक्त हुई और तुम्हें प्राप्त करने के लिए उसने मेरी आराधना की । मेरी ही आज्ञा से द्वारपाल ने तुम्हें निमन्त्रण दिया था। किन्तु तुम्हें विश्वास नहीं हुआ और तुम नहीं गए । अब कल तुम वहाँ जाना । तुम्हें द्वारपाल बुलाने आएगा । तुम उस राजकुमारी का पाणिग्रहण कर लेना । यदि तुम्हें किसी प्रकार के वरदान की आवश्यकता हो, तो बोलो।"
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