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गौतम ऋषि और अहिल्या का नाटक
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करते हुए अश्वग्रीव का जीव में आपका पुत्र हुआ और हरिश्मश्रु मन्त्री वह पाड़ा हुआ। पूर्व का वैर उदय होने से मैंने उस पाड़े का पाँव ही काट डाला। वह पाड़ा मर कर असुरकुमार में लोहिताक्ष नामक देव हुआ और यह मुझे वन्दना करने आया है। संसार रूप रंगभूमि का नाटक कितना विचित्र है ? जीव कसे व कितने स्वांग सज कर खेल खेलता है।" केवलज्ञानी की बात सुन कर लोहिताक्ष देव, भगवान् को वन्दना करके चला गया और उसीने इसी मन्दिर में मृगध्वज मुनि, कामदेव सेठ और पाड़े की प्रतिमा करवा कर यह मन्दिर बनाया । कामदेव सेठ का पुत्र कामदत्त और कामदत की पुत्री बन्धुमती यहीं रहते हैं । सेठ ने बन्धुमती के विषय में किसी भविष्यवेत्ता से पूछा था, तो उन्होंने कहा था--"जो पुरुष इस देवालय के मुख्य द्वार को खोलेगा, वही इसका पति होगा।" वसुदेव ने यह बात सुन कर वह द्वार खोला। कामदत्त सेठ, मन्दिर का द्वार खुला जान कर तत्काल वहां आया और अपनी पुत्री बन्धुमती का विवाह वसुदेवजी के साथ कर दिया। वसुदेव द्वारा मन्दिर का द्वार खोलने और बन्धुमती के लग्न वसुदेव से होने की बात राजा के अन्तःपुर में भी पहुंची। राजकुमारी प्रियंगुसुन्दरी भी राजा के साथ सेठ के घर आई वसुदेवजी को देख कर प्रियंगु मुंदरी मोहित हो गई। अन्तःपुर-रक्षक वसुदेवजी को, दूसरे दिन अन्तःपुर में आने का कह कर चला गया।
गौतमऋषि और अहिल्या का नाटक
उसी दिन वसुदेव ने एक नाटक देखा । उस नाटक में बताया गया था कि
विद्याधर राजा नमि का पुत्र वासव हुआ। उसके वंश में कितने ही वासव हुए। अंतिम वासव का पुत्र 'पुरुहुत' हुआ। एक दिन पुरुहुत हाथी पर बैठ कर वन-विहार करने गया। उसने एक आश्रम में गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या को देखी और काम-पीड़ित हो कर उसके साथ दुराचरण करने लगा। इतने में कहीं बाहर गये हुए गौतम ऋषि आ गए। उन्होंने कुपित हो कर पुरुहुत का लिंगच्छेद कर दिया। नाटक का यह दृश्य देख कर वसुदेव भयभीत हुए। उन्होंने सोचा-'राजकुमारी के पास गुपचुप जाना भी भयपूर्ण है।' वे नहीं गए। रात को अचानक उनकी निद्रा खुली। उन्होंने अपने शयनकक्ष में एक दिव्यरूपधारिणी स्त्री देखी। उन्होंने मन में ही सोचा-'यह देवांगना जैसी महिला कौन है ?' उसी समय देवी ने कहा-" वत्स ! तू क्या सोचता है ? चल मेरे साय।" इतना
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