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तीर्थकर चरित्र
हुआ । मैने सोचा कि हृदयेश के मन में मैं बसी हुई हूँ । इससे मेरे हृदय का क्लेश मिट गया, किंतु इसी निमित्त से मदनवेगा रूठ गई। उधर शूर्पणखा मदनवेगा के कक्ष को आग लगा कर, मदनवेगा का रूप बना कर आपको ले उड़ी तो मैं भी साथ रही। जब उसने आपको नीचे गिराया, तो मैं आपको झेलने के लिए आई, किंतु उसने मुझे देख लिया और विद्याबल से मुझे वहाँ से हटा दिया । मैं उसके भय से इधर-उधर भागने लगी, तो अचानक मुझ-से एक मुनिमहात्मा का उल्लंघन हो गया, इससे मेरी विद्या भ्रष्ट हो गई । किंतु सद्भाग्य से मेरी धात्रिमाता उसी समय मुझ से आ मिली। मैने उससे सारा वृत्तान्त कह सुनाया। वह आपकी खोज करने निकली। उसने जरासंध के सुभटों से आपकी रक्षा की और उसी दशा में यहां ला कर आपको मुक्त किया। यही आपसे मिलन की कहानी है।"
बालचन्द्रा का वृत्तांत्त
रानी वेगवती का वृत्तांत सुन कर वसुदेव प्रसन्न हुए और उसी वन में एक तापस के आश्रम में रह गए । एकबार वे दोनों नदी किनारे घूम रहे थे कि उन्हें नागपाश में जकड़ी हुई एक युवती दिखाई दी। वेगवती से उसकी दशा देखी नहीं गई । उसकी प्रेरणा से वसुदेव ने उस युवती को नागपाश से मुक्त किया और जल-सिंचन से उसकी मूर्छा दूर कर सावचेत की। चैतन्यता प्राप्त युवती ने अपने उपकारी की और देखा और तत्काल उठ कर प्रदक्षिणा पूर्वक प्रणाम किया, फिर, कहने लगी;--
"महानुभाव ! आपके प्रभाव से मेरी विद्या सिद्ध हो गई। वैताढ्य गिरि के गगनवल्लभ नगर का राजा विद्युदंष्ट्र, एक महात्मा को ध्यानस्थ अवस्था में देख कर चौका और बोला--"यह कोई विपत्ति का वाहक है । अवश्य ही यह उत्पात करेगा। इसलिए इसे यहाँ से वरुणाचल ले जा कर मार डालना चाहिए । उसके इन शब्दों से, उसके अनुचर उन महात्मा को मारने के लिए उद्यत हुए। वे ध्यानस्थ मुनि उस समय शुक्लध्यान में वर्द्धमान हो कर क्षपकश्रेणी चढ़ रहे थे। उन्हें केवलज्ञान हो गया। धरणेन्द्र वहाँ केवलमहोत्सव करने आया । धरणेन्द्र ने देखा कि सर्वज्ञ वीतराग भगवान के विरोधी, उन्हें कष्ट देने को तत्पर हैं, तो उसने कुपित हो कर उन्हें विद्याभ्रष्ट कर दिया। उन आक्रमणकारियों को अपनी अधमता का भान हुआ । वे अत्यन्त विनम्र हो कर दीनतापूर्वक कहने लगे;
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