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जरासंध द्वारा वसुदेव की हत्या का प्रयास
__ “किसी ज्ञानी ने जरासंध नरेश को कहा था कि "कल प्रातःकाल यहाँ आ कर जो कोटि-द्रव्य जीत कर दान करेगा, उसका पुत्र ही तुम्हारा घातक होगा।" इस भविष्यवाणी से प्रेरित हो कर राजा ने तुम्हें बन्दी बनाने की आज्ञा दी है और अब तुम्हारा जीवन समाप्त होने वाला है । जब तुम ही नहीं रहोगे, तो तुम्हारे पुत्र होगा ही कैसे ? और राजा को मारने वाला जन्मेगा ही नहीं, तो भविष्यवाणी अपने-आप निष्फल हो जायगी। यद्यपि तुम निरपराध हो, तथापि भावी अनिष्ट को टालने के लिए तुम्हारी मृत्यु आवश्यक हो गई है।"
लोकापवाद से बचने के लिए, वसुदेवजी को गुप्तरूप से मारने की व्यवस्था की गई । उन्हें एक चमड़े की धमण में बन्द किये और वन में एक पर्वत पर ले जा कर नीचे फक दिया।
इधर रानी वेगवती की धात्रिमाता वसुदेवजी की खोज करती हुई उधर भा निकली। उसे वसुदेवजी के अपहरण और राजगृही आने का पता लग चुका था। जब मारक लोग एक चमड़े का बड़ा-सा थेला उठा कर ले जा रहे थे, तो उसे देख कर वह शंकित हुई। उसने अधर से ही उस धमण को झेल लिया और यहाँ ले आई । वसुदेव ने अनुभव किया कि मुझे भी चारुदत्त के समान कोई भारण्ड-पक्षी उठा कर आकाश में ले जा रहा है। उन्हें पृथ्वी पर रख कर थेले का बन्धन खोला । बब वसुदेव ने बाहर देखा, तो उन्हें वेमवती के पांच दिखाई दिये । वे तत्काल थेले से बाहर निकले । उन्हें देखते ही वेगवती "हे नाथ ! इस प्रकार सम्बोधन करती हुई उनकी ओर बढ़ी। वसुदेव ने वेगवती से पूछा;मेरा पता तुम्हें कैसे लगा?' वेगवती ने कहा
"स्वामिन् ! जिस समय मेरी नींद खुली और मैने बाप को नहीं देखा, तो मेरे हृदय में गम्भीर आघात लगा। में रोने-चिल्लाने लगी। प्रज्ञप्ति नाम की विद्या से मुझे आपके अपहरण का पता लगा । फिर मैंने सोचा कि मेरे पति के पास किसी महात्मा की बताई हुई कोई विद्या अवश्य होगी और उससे वे सुरक्षित रह कर कुछ ही दिनों में मुझसे या मिलेंगे। इस प्रकार सोच कर कुछ काल तक तो मैंने संतोष रखा । किन्तु जब अकुलाहट बढ़ी, तो पिता की आज्ञा प्राप्त कर के में आपकी खोज में निकली । कुछ दिनों तक तो मुझे आपका पता नहीं लगा, किंतु एक दिन मंने आपको मदनवेगा के साथ वन-विहार करते देख लिया। फिर में अदृश्य रह कर आपके पीछे-पीछे घूमती रही । एकबार आपने मेरा नाम ले कर मदनवेगा को सम्बोधित किया, तो मुझे अपने मन में बड़ा सन्तोष
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