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________________ वसुदेव से वेगवती का छलपूर्वक लग्न ___कालान्तर में एक दिन वसुदेव की प्रात.काल नींद खुली, तो उन्हें सोमश्री दिखाई नहीं दी । उन्हें गम्भीर आघात लगा । वे शून्यचित्त हो गए, फिर रुदन करते हुए तीन दिन तक शयनकक्ष में ही रहे, बाद में मनरंजन के लिए उपवन में गए। अचानक उन्हें सोमश्री दिखाई दी। वसुदेव तत्काल उसके निकट पहुँचे और उपालम्भ पूर्वक बोले--"अरे मानिनी ! मैने तेरा कौनसा अपराध किया, सो तू मुझे छोड़ कर यहाँ वन में आ बैठी ? बता तू क्यों रूठी और यह वनवास क्यों लिया ?" -"नाथ में रूठी नहीं, किन्तु अपने नियम का पालन कर रही हूँ। मैंने आपके लिए एक विशेष व्रत लिया था, जिससे तीन दिन तक मौनपूर्वक रह कर, इस देव की आराधना करती रही। अब आप इस देव की पूजा कर के मुझे पुनः देव-साक्षी से ग्रहण करें, जिससे इस व्रत को विधि पूरी हो और अपना दाम्पत्य-जीवन पूर्णरूप से सुखमय एवं निरापद रहे।" वसुदेव ने वैसा ही किया। फिर उस सुन्दरी ने कहा---'यह देव का प्रसाद ग्रहण कीजिए'--कह कर वसुदेव को मदिरा पिलाई। वे वहीं एक कुंज में रह कर क्रीड़ा करते रहे । जब प्रातःकाल वसुदेव की नींद खुली, तो देखा कि उसके पास रानी सोमश्री नहीं, किन्तु कोई दूसरी ही स्त्री है। आश्चर्य के साथ वसुदेव ने पूछा--"सुन्दरी ! तू कौन है ? सोमश्री कहाँ गई ?' -"मैं दक्षिण-श्रेणी के सुवर्णाभ नगर के राजा चित्रांग और उनकी अंगारवती रानी की पुत्री वेगवती हूँ । मानसवेग मेरा भाई है । मेरे पिता ने भाई को राज्य दे कर प्रव्रज्या स्वीकार की। मेरे भाई राजा मानस वेग ने आपकी रानी सोमश्री का अपहरण किया और उसे समझाने के लिए मुझे भेजा, किन्तु आपकी रानी ने उसकी दुरेच्छा पूरी नहीं की। सोमश्री ने मुझे अपनी सखी बना ली और आपको उसके पास ले जाने के लिए मुझे यहाँ भेजी। मैने यहाँ आ कर आपको देखा, तो स्वयं मोहित हो गई। आपको पाने के लिए मैने सोमश्री का रूप धारण किया और छलपूर्वक आपके साथ विधिवत् लग्न किये। अब तो मैं आपकी हो ही गई हूँ। मैं आपको सोमथी के पास भी ले चलूगी।" जब वहां के लोगों ने सोमश्री के स्थान पर वेगवती को देखा, तो उनको अत्यंत आश्चर्य हुआ। वेगवती ने वसुदेव की आज्ञा से सोमश्री के हरण और अपने आगमन तथा लग्न सम्बन्धी सारा विवरण लोगों को कह सुनाया। वसुदेव निद्रा-मग्न थे कि मानसवेग उनको उठा कर आकाश-मार्ग से ले उड़ा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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