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एक साथ पाँचसो पत्नियाँ
ने, अपनी सोमश्री पुत्री के स्वयंवर के लिए इस नवीन नगर की रचना की और बहत से राजाओं को बुलाया, किन्तु वे सभी राजा अपनी बुद्धि-कौशल में सही नहीं उतरे, जिससे उन्हें खाली ही लौट आना पड़ा । तब से यह नवीन नगर बना हुआ है।" वसुदेव इन्द्रस्तम्भ के पास गए और नमस्कार किया । उसी समय राजरानी, अपने अतःपुर के परिवार सहित इन्द्रस्तम्भ को वन्दन कर के लौट रही थी कि गजशाला से बन्धन तुड़ा कर एक हाथी भाग निकला। वह हाथी उसी ओर भागा, जिस ओर से रानी सपरिवार आ रही थी। हाथी ने राजकुमारी को सूंड में पकड़ कर रथ में से नीचे गिरा दिया। राजकुमारी निःसहाय हो कर एक ओर पड़ी थी और हाथी उस पर पुन: वार करना चाहता था कि वसुदेव उसके निकट आये और हाथी को ललकारा। हाथी, कुमारी को छोड़ कर वसुदेव पर झपटा । वसुदेव ने पहले तो हाथी को छलावा दे कर इधर-उधर खूब घुमाया, फिर योग्य स्थान देख कर भुलावा दिया और मूच्छित राजकुमारी को उठा कर निकट के एक घर में सुलाया और वस्त्र से हवा करते हुए सावचेत करने लगे। सावचेत होने पर कुमारी को धायमाता के साथ उसे राज्य के अन्तःपुर में पहुंचा दिया । वसुदेव अपने श्वशूर के साथ कुबेर सार्थवाह के घर आये। इतने में राजा का आमन्त्रण मिला । प्रतिहारी ने कहा"राजकुमारी सोमश्री के लिए स्वयंवर की तैयारी हो रही थी। उधर सर्वाण नाम के मुनिराज का केवल-महोत्सव करने के लिए देवों का आगमन हुआ। देवागमन देख कर राजकुमारी को जातिस्मरण ज्ञान हुआ । उसे अपने पूर्व के देव-भव में भोगे हुए भोग का स्मरण हो आया। वह अपने प्रिय देव के मरने पर शोकात हो गई थी। उसने किन्हीं केवलज्ञानी भगवान् से अपने पतिदेव का उत्पत्ति स्थान पूछा था। भगवान ने कहा था कि "तेरा पति भरतक्षेत्र में हरिवंश के एक राजा के यहाँ पुत्रपने उत्पन्न हुआ है और तू भी आयु पूर्ण कर राजकुमारी होगी । यौवनवय में तुझ पर एक हाथी का उपद्रव होगा। उस हाथी से तेरी रक्षा वही राजकुमार करेगा और वही तेरा पति होगा।" इसके बाद कालान्तर में वहाँ से च्यव कर वह राजकुमारी हुई। पूर्वभव का ज्ञान होने पर राजकुमारी मौन रहने लगी। आग्रहपूर्वक मौन का कारण पूछने पर कुमारी ने अपने पूर्वभव का वृत्तान्त, अपनी सहेली के द्वारा बताया । अब महाराज आपको स्मरण कर रहे हैं । कृपया पधारिये ।" वसुदेव राजभवन में पहुँचे । उनका राजकुमारी सोमश्री से विवाह हो गया। वे वहीं सुखपूर्वक रह कर समय व्यतीत करने लगे।
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