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तीर्थकर चरित्र
उन्होंने उसे खूब दौड़ाया, थकाया और वश में कर लिया। राजा ने अपनी पुत्री कपिला का लग्न वसुदेव से कर दिया । वसुदेव वहीं रह कर सुख-भोग में समय व्यतीत करने लगे। उनके एक पुत्र हुआ, जिसका नाम 'कपिल' रखा गया।
एक बार वसुदेव, हस्तीशाला में गए और उन्होंने एक नये आकर्षक हाथी को देखा। वे उस पर सवार हो गए। उनके सवार होते ही हाथी ऊपर उठ कर आकाश में लड़ने लगा । वसुदेव उस मायावी हाथी पर मुक्के का प्रहार करने लगे। मार की पीड़ा से पीड़ित होकर वह नीचे गिरा और एक सरोवर के किनारे आ लगा। नीचे गिरते ही वह अपना मायावी रूप छोड़ कर वास्तविक रूप में आया। अब वह नीलकंठ विद्याधर दिखाई देने लगा। यह वही नीलकंठ है जो नीलयशा से वसुदेव के विवाह के समय युद्ध करने आया था।
वहाँ से चल कर वसदेव सालगह नगर आये। वहाँ उन्होंने भाग्यसेन राजा को धनुर्वेद की शिक्षा दी । कालान्तर में भाग्यसेन राजा पर उसका भाई मेघसेन सेना ले कर चढ़ आया। वसुदेव कुमार ने अपने युद्ध-कौशल से मेघसेन को जीत लिया। भाग्यसेन ने वसुदेव के पराक्रम से प्रभावित हो कर अपनी पुत्री पद्मावती का उसके साथ लग्न कर दिया
और मेघसेन ने भी अपनी पुत्री अश्वसेना ब्याह दी। वसुदेव ने कुछ दिन वहीं रह कर सुखमय काल व्यतीत किया। वहां से चल कर वे भद्दिलपुर नगर गये । भद्दिलपुर नरेश की अचानक मृत्यु हो गई थी। उनके पुत्र नहीं था। राज्य का संचालन उनकी पुंढा नाम की पुत्री, पुरुष-वेश में रह कर करती थी। वसुदेव कुमार को देखते ही वह मोहित हो गई। उसने वसुदेव कुमार के साथ विवाह किया। कालान्तर में उसके पुंढ़ नामक पुत्र हुआ। वह वहाँ का राजा घोषित हुआ।
वसुदेव, रात के समय निद्रा ले रहे थे कि अंगारक विद्याधर उन्हें उठा कर ले गया और गंगा नदी में डाल दिया। वसुदेव नदी में गिरते ही सँभल गए और तैर कर किनारे पर आये । सूर्योदय के बाद वस्त्रों के सूख जाने पर वे इलावर्द्धन नगर में आये और एक सार्थवाह की दुकान पर बैठ गए । उनके बैठने के बाद व्यापार खूब चला और व्यापारी को लाख स्वर्ण-मुद्राओं का लाभ हुआ । सार्थवाह ने कुमार को सौभाग्यशाली एवं पुण्यवान जान कर आदर-सत्कार किया और रथ में बिठा कर अपने घर लाया तथा थोड़े ही दिनों में अपनी रत्नवती नाम की पुत्री का विवाह-वसुदेव के साथ-कर दिया। इन्द्र महोत्सव के समय वसुदेव अपने ससुर के साथ महापुर नगर गए। उन्होंने नगर के बाहर एक नवीन नगर की रचना देख कर उसका कारण पूछा। सार्थवाह ने कहा-"इस नगर के सोमदत्त राजा
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