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________________ वसुदेव से वेगवती का छलपूर्वक लग्न ३०३ - जब वसुदेव को अपना अपहरण लगा, तो वे मानसवेग पर मुष्टि-प्रहार करने लगे। मुष्टिप्रहार से पीड़ित हुए मानसवेग ने वसुदेव को छोड़ दिया। वे गंगानदी पर उड़ रहे थे। वसुदेव मानसवेग से छूट कर नीचे गंगा नदी में गिरने लगे। उस समय गंगा में चण्डवेग नामक विद्याधर, विद्या की साधना कर रहा था। वसुदेव उसी पर गिरे। इस आकस्मिक विपत्ति में भी साधना में स्थिर रहने के कारण उसकी विद्या उसी समय सिद्ध हो गई। चण्डवेग ने वसुदेव से कहा -"महात्मन् ! आपके प्रभाव से मेरी , विद्या सिद्ध हो गई । कहिये मैं आपकी क्या सेवा करूँ ?" वसुदेव ने उससे आकाशगामिनी विद्या मांगी। चण्डवेग ने प्रसन्नतापूर्वक सिखाई । अब वसुदेव कनखल गांव के द्वार में रह कर समाहित मन से विद्या साधने लगे। चण्डवेग के जाने के बाद विद्युद्वेग राजा की पुत्री मदनवेगा वहाँ आई और वसुदेव को देखते ही उस पर आसक्त हो गई । वसुदेव को उठा कर वह वैताढ्य पर्वत पर ले गई और पुष्पशयन उद्यान में रख दिया। फिर वह अमृतधार नगर में गई । प्रातःकाल मदनवेगा के तीन भाई--१ दधिमुख २ दंडवेग और चंडवेग, वसुदेव के पास आये । इस चंडवेग ने ही गंगा नदी पर वसुदेव को आकाशगामिनी विद्या सिखाई थी । वे वसुदेव को आदरपूर्वक नगर में ले गए और अपनी बहिन मदनवेगा का लग्न उनके साथ कर दिया । अब वसुदेव वहीं रहने लगे । वे मदनवेगा पर इतने प्रसन्न हुए कि उसे इच्छित मांगने का वचन दे दिया। अन्यदा दधिमुख ने वसुदेव से कहा--"दिवस्तिलक नगर का राजा त्रिशिखर के सूर्पक नाम का पुत्र है । राजा त्रिशिखर ने अपने पुत्र के लिए मेरे पिता से मदनवेगा की माँग की । मेरे पिता ने उसकी माँग स्वीकार नहीं की । एक चारण मुनि से पूछने पर पिताश्री को उन्होंने कहा था कि "मदनवेगा का पति हरिवंश कुलोत्पन्न वसुदेव होंगे। कुमार वसुदेव की पहचान यह कि तुम्हारा पुत्र चंडवेग, गंगा नदी में विद्या साधन करेगा, तब वसुदेव आकाश से चण्डवेग के कन्धे पर गिरेगा और उसके गिरते ही चण्डवेग की विद्या सिद्ध हो जायगी।" इस भविष्यवाणी के कारण मेरे पिताश्री ने त्रिशिखर नरेश की माँग स्वीकार नहीं की। इससे कुद्व हो कर बलवान् राजा त्रिशिखर ने मेरे पिता को बन्दी बना लिया और अपने यहाँ ले गया। आपने मेरी बहिन मदनवेगा पर प्रसन्न हो कर जो वरदान दिया है, उसका पालन करने के लिए आप हमारे पिताश्री एवं अपने ससुर को बन्धन-मुक्त कराइए । हमारे पूर्वज नमि राजा थे। उनके पुलस्त्य पुत्र था। उसके वंश क्रम में अरिंजय नगर का स्वामी मेगनाद नामक राजा हुआ। सुभूम चक्रवर्ती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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