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तीर्थकर चरित्र
उसी समय राजभवन के बाहर कोलाहल सुनाई दिया। वसुदेव ने कोलाहल का कारण पूछा । द्वारपाल ने कहा-"नील नाम का विद्याधर झगड़ा कर रहा है । वह नीलयशा को प्राप्त करना चाहता है झगड़े का मूल यह है कि-शकटमुख नगर के नीलवान् राजा की नीलवती रानी से एक पुत्र और पुत्री जन्मे । बहिन का नाम "नीलांजना" और भाई का नाम "नील" रखा । दोनों भाई-बहिन, पहले वचन-बद्ध हो चुके थे कि "यदि अपने में से किसी एक के पुत्र और दूसरे के पुत्री होगी, तो दोनों का परस्पर लग्न कर देंगे ।" यह नीलयशा-आपकी सद्य परिणिता पत्नी, उस नीलांजना की पुत्री है, जो वचनबद्ध है
और वह झगड़ा करनेवाला रानी का भाई नील है। वह कहता है कि वचन का पालन कर के नीलयशा का लग्न, मेरे पुत्र नीलकंठ से होना चाहिए । उसने पहले भी सन्देश भेजा था। उसे स्वीकार करने में खास बाधा यही थी कि कुछ काल पूर्व बृहस्पति नामक मुनि ने नीलयशा का भविष्य बतलाते हुए कहा था कि--'अर्द्ध भारतवर्ष के पति ऐसे वासुदेव के पिता और यादव-वंश में उत्तम तथा कामदेव के समान रूपसम्पन्न एवं सौभाग्यशाली राजकुमार वसुदेव इस नीलयशा के पति होंगे।" इस भविष्य-वाणी के कारण नीलयश आपको दी जा रही है और यही नील के झगड़े का कारण है । हम नीलयशा उसे दे सकते । सिंहदृष्ट्र राजा ने नील के साथ युद्ध कर के उसे पराजित कर दिया है । इसी का यह कोलाहल है।"
नीलयशा का हरण और सोमश्री से लग्न
नीलयशा के साथ क्रीड़ा करते हुए वसुदेव, सुखपूर्वक रहने लगे। शरदऋतु में विद्याधर लोग विद्या साधने और औषधियें प्राप्त करने के लिए ह्रीमान पर्वत पर जाने लगे । यह जान कर वसुदेव ने नीलयशा से कहा, "मैं तुमसे कुछ विद्या सीखना चाहता हूँ। कहो, तुम मेरी गुरु बनोगी ?" नीलयशा और वसुदेव ह्रीमान पर्वत पर आये । पर्वत की शोभा और मोहक दृश्य देख कर वसुदेव कामातुर हो गए। नीलयशा ने तत्काल कदलिगृह की विकुर्वणा की। वे दोनों क्रीड़ारत हुए। इतने में उनके सामने से एक अत्यंत सुन्दर मयूर निकला। उस मयूर की सुन्दरता एवं आकर्षकता देख कर नीलयशा उसे पकड़ने के लिए दौड़ी। जब वह मयूर के पास पहुंची, तो वह धूर्त उसे अपनी पीठ पर बिठा कर उसी समय उड़ गया । वसुदेव ने उसका पीछा किया, किंतु वे उसे छुड़ा नहीं सके । वे चलते हुए गाँव में
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