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________________ २९४ 64 'पिताजी ने प्रव्रज्या ग्रहण करने के पूर्व हमें कहा था कि - " मुझे एक ज्ञानी ने कहा था; - इस कन्या को कला प्रदर्शन में जीत कर भूचर मनुष्य वसुदेवकुमार ग्रहण करेंगे । इसलिए मेरे भूचर मित्र चारुदत्त को इसे देदेना, जिससे कि वे इसका वसुदेवकुमार के साथ लग्न करदें । इसलिए इसको आप अपनी ही पुत्री समझ कर साथ ले जाइए !" मैं गग्धर्वसेना को ले कर अपने घर आने को तत्पर हुआ । मेरे स्मरण करने पर देव उपस्थित हुआ और अमितगति के दोनों पुत्र, अपने साथियों सहित, गन्धर्वसेना को ले कर आकाश मार्ग से मुझे यहां लाये । देव और विद्याधर, मुझे करोड़ों स्वर्ण, रत्न, मोती आदि से समृद्ध बना कर चले गये । दूसरे दिन में अपने मामा, मेरी मित्रवती पत्नी और वेणीबन्ध रहित x मेरी प्रेमिका वेश्या वसंतसेना से मिला और हम सब सुखी हुए। हे कुमार वसुदेवजी ! यह गन्धर्वसेना की कथा है । यह मेरी पुत्री नहीं, किंतु विद्याधर नरेश अमितगति की राजकुमारी है । आप इसकी अवज्ञा नही करें ।" वसुदेवजी का हरण और नीलयशा से लग्न इसे प्रकार चारुदत्त से गन्धर्वसेना का वृत्तांत सुन कर वसुदेव संतुष्ट हुए और गन्धर्वसेना के साथ क्रीड़ा करने लगे। एक बार वसतऋतु में वसुदेव, गन्धर्वसेना के साथ रथारूढ़ हो कर क्रीड़ा करने के लिए उद्यान में गए । उन्होंने देखा -- एक मातंग युवती अपने अनेक साथियों के साथ बैठी है । मातंगकुमारी का रूप देख कर कुमार मोहित हो गए और वह सुन्दरी भी कुमार पर मुग्ध हो गई । दोनों एक-दूसरे को अनिमेष दृष्टि से देखने लगे । गन्धर्वसेना यह देख कर रुष्ट हुई और रथ चालक से बोली--" रथ की चाल तेज करो ।" वहाँ से आगे बढ़ कर वे उपवन में पहुँचे और कीड़ा करने के बाद नगर में आये । उसी समय एक वृद्धा मातंगी, वसुदेव के समीप आई और आशिष दे कर कहने लगी; " बहुत काल पहले भ० ऋषभदेवजी ने राज्य का विभाग करके अपने पुत्रों को दे दिया और प्रव्रजित हो गए। उनके संसार त्याग के बाद नमि और विनमि, भगवान् के पास वन में गये और राज्य का हिस्सा प्राप्त करने के लिए सेवा करने लगे । उनकी तीर्थंकर चरित्र : x चादत्त के बियोग में वेश्यापुत्री वसंतसेना दुःखी रहता थी। उसने श्रृंगार करना भ त्याग दिया था और बालों की वेणी नहीं बांध कर खुले ही रखती थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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