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चारुदत्त की कथा
गन्धर्वसेना का वृत्तांत सुनाते हुए चारुदत्त सेठ ने वसुदेव से कहा; ---" इस नगरी में भानुदत्त नास के एक धनवान सेठ रहते थे। पुत्र-लाभ नहीं होने के कारण वे चिन्तित रहते थे। एकबार उन्होंने एक चारण मुनि से पूछा । उन्होंने कहां--" तुझे पुत्र-लाभ होगा।" कालान्तर में मेरा जन्म हुआ । यौवनवय में मैं अपने मित्र के साथ समुद्र-तट पर गया। मैने देखा कि भूमि पर किसी आकाशगामी के पाँवों की आकृति अंकित हैं । उसे एक पुरुष और एक स्त्री के सुन्दर चरण चिन्ह दिखाई दिये। वह उन पद-चिन्हों के अनुसार आगे बढ़ा । एक उद्यान के कदलिगृह में उसने एक पुष्य-शैया देखी, जिसके समीप ढाल और तलवार रखे हुए थे। उसके समीप ही एक मनुष्य को, एक वृक्ष के साथ लोहे की कोले ठोक कर जकड़ा हुआ देखा । जो तलवार उसके पास रखी थी, उसके कोश (म्यान) के साथ तीन औषधियाँ बंधी हुई थी। मैंने अपनी बुद्धि से सोच कर उनमें से एक औषधी निकाला और उसका प्रयोग कर, उस पुरुष के अंग पर लगी हुई कीलें निकाल कर उसे वृक्ष से पृथक् किया। दूसरी औषधी से उसके शरीर के घाव भर दिये और तीसरी औषधी से उसकी मूर्छा दूर करके सावचेत कर दिया । वह पुरुष सावधान हो कर मेरा उपकार मानता हुआ बोला ;--
" मैं वैताढ्य गिरि के शिवमन्दिर नगर के विद्याधर नरेश महाराज महेन्द्र विक्रम का पुत्र अमतगति हूँ। मैं अपने मित्र धूमशिख और गौरमुण्ड के साथ क्रीड़ा करने के लिए हीमवान पर्वत पर गया । वहाँ मेरे तपस्दी मामा हिरण्यरोम की पुत्री सुकुमालिका दिखाई दी। वह अत्यंत रूपवती एवं मन-मोहक थी। मैं उसे देख कर कामातुर हो गया और अपने घर चला आया। मैं उदास रहने लगा। मेरे पिता, मेरी उदासी एवं चिन्तामग्न दशा देख कर सोच में पड़ गए । उन्होंने मुझसे चिन्ता का कारण पूछा, किन्तु मैं मौन रहा । मेरे मित्र ने उन्हें कारण बता दिया। फिर पिताजी ने मेरा विवाह सुकुमालिका के साथ कर दिया। मै सुखभाग पूर्वक जीवन बिताने लगा। मेरे मित्र धूमशिख की दृष्टि मेरी पत्नी मुकु मालिका पर पड़ी वह उस पर मोहित हो गया । मैने उसकी दृष्टि में विकार देखा था, फिर भी मैने अपनी मित्रता में कमी नहीं आने दी । मैं अपनी पत्नी के साथ वन-विहार करता हुआ यहाँ आया और आमोद-रत था कि वह कुमित्र यहाँ आया
और अचानक आक्रमण करके मुझे इस वृक्ष के साथ कीलें ठोक कर जकड़ दिया, और मेरी पत्नी का हरण कर के ले गया। मैं अचानक आई हुई इस विपत्ति और पीड़ा से बेभान हो गया और कदाचित् मर भी जाता, किन्तु आपने ऐसी विकट परिस्थिति और
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