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________________ नन्दीसेन २७३ नाम का पुत्र हुआ, जो सूर्य के समान तेजस्वी था। शूर नरेश के शौरि और सुवीर नाम के दो वीर पुत्र हुए । शूर नरेश ने शौरि को राज्याधिकार और सुवीर को युवराज पद दे कर प्रव्रज्या स्वीकार कर ली। शौरि ने अपने अनुजबन्धु सुवीर को मथुरा का राज्य दे कर कुशात देश चला गया और वहाँ शौर्यपुर नामक नगर बसा कर राज करने लगे । शौरि राजा के अन्धकवष्टिण आदि कई पुत्र और सुवीर से भोजवृष्णि आदि पुत्र हुए । सुवीर ने अपने पुत्र भोज दृष्णि को मथुरा का राज्य दे कर स्वयं सिन्धु देश चला गया और वहाँ सौवीरपुर नगर बसा कर राज करने लगा । शौरि नरेश ने अपने पुत्र अन्धकवृष्णि को राज दे कर दीक्षा ग्रहण की और संयम-तप का आराधन कर मोक्ष प्राप्त हुए । मथुरा नरेश भोजवृष्णि के उग्रसेन नाम का एक उग्र पराक्रमो पुत्र हुआ और अन्धकवृष्णि को सुभद्रा रानी से दस पुत्र हुए। उनके नाम इस प्रकार थे--१ समुद्रविजय २ अक्षोभ ३ स्तिमित ४ सागर ५ हिमवान् ६ अचल ७ धरण ८ पूरण ९ अभिचन्द्र और १० वसुदेव । ये दशों ‘दशाह' नाम से प्रसिद्ध हुए । इनके कुन्ती और मद्री नाम की दो बहिने थीं। कुन्ती पाण्डु राजा को और मद्री दमघोष राजा को ब्याही थी। नन्दीसेन एक समय अन्धकवृष्णि नरेश ने सुप्रतिष्ठ नाम के अवधिज्ञानी मुनि से पूछा-- "भगवन् ! मेरे वसुदेव नाम का सब से छोटा पुत्र है। वह अत्यंत रूप सम्पन्न तथा सौभाग्यवान् है, कलाविद् और प्रभावशाली है। इस प्रकार की विशेषताएँ इसमें कसे उत्पन्न हुई ?" --"राजन् ! मगधदेश के नन्दीग्राम में एक गरीब ब्राह्मण था, उसके सोमिला नाम की पत्नी से नन्दीसेन नाम का पुत्र हुआ था । वह महा मन्दभागी था और बालवय में ही माता-पिता के मर जाने से अनाथ हो गया था । उदरविकार से उसका पेट बढ़ गया था। उसके दाँत लम्बे, नेत्र ख राख और मस्तक चोरस था। वह पूर्णरूप से कुरूप था। स्वजनों ने उसका त्याग कर दिया था, किन्तु उसके मामा ने उसे अपने यहाँ रख लिया था । उसके मामा के सात पुत्रियां थीं। वे विवाह के योग्य हुई । नन्दीसेन भी युवावस्था प्राप्त था । मामा ने नन्दीसेन से कहा--" में तुझे एक पुत्री दूंगा।" कन्या पाने के लोभ से नन्दीसेन, मामा के घर सभी काम, मन लगा कर परिश्रम के साथ करने लगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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