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________________ २७२ तीर्थकर चरित्र अपराजित के भव के अनुज बन्धु, शूर और सोम देव भी आरण देवलोक से च्यव कर शंखकुमार के अनुज-बन्धु हुए । श्रीसेन महाराज ने युवराज शंख का राज्याभिषेक कर के गणधर महाराज गुणधरजी के समीप प्रव्रज्या स्वीकार की और दुस्तर तपस्या करने लगे । वर्षों तक विशुद्ध चारित्र और घोर तप का पालन कर, घातिकर्मों को नष्ट कर केवलज्ञानी हो गए । एकदा केवली भगवान् हस्तिनापुर पधारे। शंख नरेश ने भगवान् का धर्मोपदेश सुना और पूछा "भगवन् ! मैं समझता हूँ कि संसार में कोई किसी का सम्बन्धी नहीं होता, फिर भी महारानी यशोमती पर मेरी इतनी ममता क्यों है ?" -"यशोमती से तुम्हारा पूर्व-भवों का सम्बन्ध है । धनकुमार के भव में यह तेरी धनवती नाम की पत्नी थी। फिर सौधर्म देवलोक में मित्रदेव हुई। उसके बाद चित्रगति के भव में रत्नवती पत्नी हुई । वहाँ से माहेन्द्र देवलोक में दोनों मित्र देव हुए । वहाँ से च्यव कर तू अपराजित हुआ और यह प्रीतिमता पत्नी हुई । इसके बाद मारण देवलोक में मित्रदेव हुए। अब इस सातवें भव में यह तेरी रानी है । इस प्रकार भवान्तर से तुम्हारा स्नेह-सम्बन्ध चला आ रहा है। यहाँ से तुम दोनों अपराजित नामके चौथे अनुत्तर विमान में उत्पन्न होओगे। उसके बाद तुम अरिष्टनेमि नाम के बाईसवें तीर्थकर होओगे और यशोमती का जीव राजीमती-तुम्हारी अपरिणित अनुरागिनी होगी और तुम्हारे पास दीक्षित हो कर परमपद प्राप्त करेगी। ये तुम्हारे यशोधर और गुणधर बन्धु तथा मतिप्रभ मन्त्री, गणधर हो कर मुक्ति लाभ करेंगे।" शंख नरेश ने अपने पुंडरीक पुत्र को राज्य दे कर दीक्षा ग्रहण की। रानी यशोमती, दोनों अनुज-बन्धु और मन्त्री भी दीक्षित हुए । शंख मुनि ने कठोर तप और विशुद्ध आराधना करते हुए तीर्थकर नामकर्म निकाचित किया और पादपोपगमन अनशन करके आयु पूर्ण कर अपराजित नाम के अनुत्तर विमान में उत्पन्न हुए और यशोमती आदि भी अपराजित विमान में उत्पन्न हुए । यह इनका माठवां भव है। वसुदेवजी इस भरतक्षेत्र की म पुरा नगरी में हरिवंश में प्रख्यात राजा 'वसु हुए, उनके पुत्र बद्ध्वज के बाद अनेक राजा हो गए । फिर 'यदु नाम का एक राजा हुआ । यदु के शूर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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