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________________ भ० अरिष्टनेमिजी -- पूर्वभव दोनों योद्धा खड्ग ले कर जूझने लगे । बहुत देर तक लड़ते रहने पर भी जब मणिशेखर सफल नहीं हुआ, तो वह विद्यासिद्ध अस्त्रों का प्रहार करने लगा । किंतु कुमार के पुण्य उदयमान् थे । उसने सभी अस्त्रों को नष्ट कर के एक बाण मणिशेखर के हृदय में मार दिया। मणिशेखर घायल हो कर भूमि पर गिर पड़ा और अचेत हो गया । कुमार ने उसे शीतल जल और वायु के उपचार से सावधान किया, शल्य निकाल कर औषधोपचार से स्वस्थ किया और पुनः युद्ध करने का आव्हान किया । मणिशेखर कुमार की शक्ति का परिचय पा चुका था, उसने कहा- " हे वीर पुरुष ! मैं आज तक अजेय रहा था । कोई भी वीर पुरुष मेरे सामने टिक नहीं सका था। आप पहले ही पुरुष हैं जिन्होंने साहस, बल और कौशल से मुझे पराजित कर दिया । मैं अपनी पराजय स्वीकार करता हूँ । यशोमती ने आपको वरण किया, यह योग्य ही हुआ । अब तो मैं स्वयं आपका अकृत सेवक हो गया हूँ और अनुग्रह की याचना करता हूँ ।" --"नहीं, नहीं, ! आप ऐसा क्यों सोचते हैं ? कहिये, मैं आप का क्या हित करूँ”–– कुमार ने नम्रतापूर्वक कहा । --"यदि आप प्रसन्न हैं, तो आप यशोमती सहित मेरे यहां चलिये और मेरी पुत्री को भी ग्रहण करने की कृपा करिये ।" मणिशेखर के कुछ सेवक भी वहाँ आ गए थे । कुमार ने दो खेचरों को अपनी सेना में भेज कर सेना को बन्दियों सहित हस्तिनापुर जाने की आज्ञा दी और एक खेचर को भेज कर यशोमती की धात्री को अपने पास बुलाया । फिर सभी जन मणिशंखर के साथ वैताढ्य पर्वत पर, मणिशेखर की राजधानी कनकपुर में आये। कुछ काल कनकपुर में रहने के बाद कुमार ने स्वस्थान जाने की इच्छा प्रकट की । मणिशेखर और अन्य विद्याधर अपनी पुत्रियों का लग्न, शंख के साथ करना चाहते थे, परन्तु शंख ने पहले यशोमती के साथ लग्न करने के बाद दूसरी कन्याओं को ग्रहण करने की इच्छा व्यक्त की । मणिशेखर और अन्य विद्याधर अपनी पुत्रियों को यशोमती और कुमार के साथ लेकर चम्पानगरी आये । जितारी नरेश और उनका परिवार अपनी खोई हुई प्रिय राजकुमारी और साथ ही इच्छित जामाता को पा कर बड़े प्रसन्न हुए । उत्सव मनाने लगे और उस उत्सव में ही यशोमती के लग्न शंखकुमार के साथ कर दिए। इसके बाद अन्य विद्याधर कुमारियों के लग्न भी शंखकुमार के साथ किये गए । कुछ दिन वहाँ रहने के बाद राजकुमार अपनी रानियों के साथ हस्तिनापुर आया । Jain Education International २७१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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