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तीर्थङ्कर चरित्र
यहि स्थिति देख कर जितशत्रु राजा चिन्तामग्न हो गए । उन्होंने सोचा - " क्या मेरी पुत्री अविवात ही रहेगी ?" राजा को चिन्तामग्न देख कर मन्त्री ने धैर्य बँधाते हुए कहा--" स्वामी ! धैर्य्य रखिए, कोई योग्य पात्र अवश्य मिलेगा । संसार बहुत विशाल है और एक-से-एक बढ़ कर मनुष्य हैं । अब आप एक घोषणा कर दें कि " राजा और राजकुमार ही नहीं, यदि कोई साधारण मनुष्य भी राजकुमारी पर विजय प्राप्त कर लेगा, तो उससे उसका विवाह कर दिया जायगा ।"
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राजा ने यह घोषणा कर दी । घोषणा सुन कर अपराजित कुमार ने सोचा-'एक स्त्री से पुरुषवर्ग पराजित हो जाय, यह ठीक नहीं । विवाह हो या नहीं, किन्तु मुझे पुरुषवर्ग का गौरव रखने के लिए प्रयत्न अवश्य करना चाहिए," इस प्रकार विचार कर, कुमार आगे बढ़ कर राजकुमारी के निकट आये । यद्यपि अपराजित, रूप परिवर्तन कर विकृत रूप में थे, तथापि पूर्वभव के स्नेह के कारण दृष्टि पड़ते ही राजकुमारी के मन में प्रीति उत्पन्न हुई । उसने अपना प्रश्न उपस्थित किया। अपराजित ने तत्काल उत्तर दे कर कुमारी पर विजय प्राप्त कर ली । कुमारी ने उसी समय हाथ में रही हुई स्वयंवरमाला अपराजित के गले में पहिना दी । एक साधारण से कुरूप मानव का राजकुमारी का वर होना, उपस्थित नरेशगण सहन नहीं कर सके । वे सभी कोपायमान हो कर अंटसंट बकते अपराजित पर आक्रमण करने को तत्पर हो गए । अपराजित कुमार अपने निकट आये एक राजा पर झपटा और उसे गिरा कर उसके शस्त्र छिन लिये फिर सब के साथ युद्ध करने लगा। थोड़ी ही देर में सभी को मार भगाया । तत्पश्चात् सभी राजा एकत्रित हो कर अपनी सम्मिलित सेना के साथ युद्ध करने आये । अपराजित ने एक छलांग मारी और सोमप्रभ राजा के हाथी पर चढ़ गया। उसी समय सोमप्रभ ने कुमार के कुछ लक्षण देख कर पहिचान लिया और शस्त्र छोड़ कर कुमार को गले लगाया और बोला-
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'अरे अपराजित ! तू यहाँ ? अरे तू इतने दिन कहाँ छुप गया था । तेरे मातापिता और हम सब तेरी चिन्ता में थे और तू छद्म-वेश में इधर-उधर फिर रहा है । यह मेरा सद्भाग्य है कि खोया हुआ भानेज इस स्थिति में भी मिला ।"
सोमप्रभ ने युद्ध रोकने की घोषणा की और सभी राजाओं को अपराजित का परिचय दिया । सभी राजा शस्त्र छोड़ कर विवाह मण्डप में एकत्रित हुए । कुमार ने भी अपना स्वाभाविक रूप प्रकट किया। शुभ मुहूर्त में राजकुमारी प्रीतिमति के लग्न राजकुमार अपराजित साथ हुए और मन्त्री ने अपनी पुत्री के लग्न विमलबोध के साथ कर दिये । दोनों मित्र वहीं रह कर सुख भोग में समय बिताने लगे ।
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