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________________ भ० अरिष्टनेमिजी -- पूर्वभव मनुष्य नहीं है, इसलिए अमंगल की आशंका बिलकुल नहीं, किंतु वह या तो प्यास की उग्रता सहन नहीं होने के कारण पानी की खोज में कहीं गया होगा, या विलम्ब होने के कारण मुझे खोजने के लिए कहीं भटक रहा होगा ! उनका वियोग लम्बा हो गया । अपराजित की खोज करता हुआ विमलबोध एक गाँव से दूसरे गाँव भटकने लगा । वह भटकता हुआ नन्दीपुर पहुँचा । नगर के बाहर उद्यान में खड़ा वह चिन्ता कर रहा था कि दो विद्याधर उसके समक्ष उपस्थित हुए और कहने लगे ; 46 'एक वन में ' भुवनभानु' नाम का विद्याधर राजा रहता है । वह महाबलि और महाऋद्धि सम्पन्न है । एक विशाल भवन की विकुर्वणा कर के वह रमणीय वन में ही निवास कर रहा है । उस विद्याधर नरेश के 'कमलिनी' और 'कुमुदिनी' नाम की दो सुन्दर कन्याएँ हैं । उन दोनों कुमारियों का वर, राजकुमार अपराजित होगा - ऐसा किसी भविष्यवेत्ता ने कहा था । तदनुसार अपराजित की खोज करने के लिए राजा की आज्ञा से हम दोनों गए थे । उस समय आप दोनों वन में जा रहे थे । हमने आपको देखा । राजकुमार तो वृक्ष के नीचे विश्राम करने लगे और आप पानी लेने गए थे । उस समय हमने राजकुमार को निद्रित कर के हरण कर लिया और अपने स्वामी के समक्ष उपस्थित किया। स्वामी ने राजकुमार का स्वागत किया और अपनी पुत्रियों का लग्न करने की इच्छा व्यक्त की। किंतु आपके वियोग से दुःखी अपराजितकुमार ने उनकी इच्छा का आदर नहीं किया और आप ही की चिन्ता में मग्न रहे । कुमार की यह दशा देर स्वामी ने हमें आपकी खोज करने की आज्ञा दी । आप की खोज में वन, पर्वत, गाँव और नगर भटकते हुए आज आपके दर्शन हुए। अब आप शीघ्र ही हमारे साथ चलें और उनकी चिन्ता मिटावें ।" विद्याधरों की बात, मन्त्रीपुत्र को अमृत के समान जीवनदायिनी लगी । उसके शरीर की दुर्बलता, अशक्ति एवं उदासीनता मिट गई और वह उसी समय अपने में प्रसन्नता स्फूर्ति एवं शक्ति का अनुभव करने लगा । वह उन विद्याधरों के साथ चल कर अपने मित्र के पास आया। दोनों बिछुड़े हुए मित्रों का हार्दिक मिलन हुआ । शुभ मुहूर्त में दोनों राजकुमारियों का अपराजित के साथ लग्न हुआ और कुछ काल तक वे वहीं रह कर सुखभोग करते रहे । उनके बाद वे दोनों मित्र देशाटन के लिए निकल गए । चलते-चलते वे श्रीमन्दिर नगर पहुँचे और वहाँ कुछ दिन के लिए ठहर गए। एक दिन नगर में भयानक घटना हो गई। राजा सुप्रभ के पेट में किसी व्यक्ति ने छुरी भोंक दी। राजा के कोई पुत्र नहीं था । राजा घायल हो कर भूमि पर पड़ा हुआ घायल होने की बात, कामलता वेश्या ने सुनी । उसने राज्य मन्त्री के निकट आ कर तड़प रहा था । राजा के Jain Education International -- For Private & Personal Use Only २६३ www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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