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तीर्थंकर चरित्र
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मैं श्रीसेन विद्याधर का पुत्र हूँ । 'सूरकान्त' मेरा नाम है । में इसे प्राप्त करने के उपाय सोचने लगा । मैने अनेक प्रकार को दुःसाध्य विद्याएँ सिद्ध की और इसका हरण कर के यहाँ लाया । मैने इसके सामने प्रस्ताव रखा कि--" या तो मेरे साथ लग्न कर, या इस अग्नि को अपना शरीर समर्पण कर ।" यह अपने निश्चय पर अडिग है । इसलिए मैं इसके शरीर के टुकड़े करके इस अग्नि में डाल कर भस्म करना चाहता था, इतने में आप आये और मुझे स्त्री-हत्या के घोर पाप से बचा लिया। आप इसके जीवन के रक्षक हैं और मुझे भी स्त्री - हत्या के महापाप से बचाने वाले हैं । हे महाभाग ! मैं आपका परिचय जानना चाहता हूँ । आप किस भाग्यशाली कुल के नर-रत्न हैं ।"
- " ये ही वे राजकुमार अपराजित हैं, जिन्हें बिना परिचय के ही यह राजकुमारी, मन से वरण कर चुकी है " -- मन्त्रीपुत्र विमलबोध ने परिचय दिया ।
राजकुमारी रत्नमाला, अपराजित का परिचय पा कर हर्षित हुई । अनिष्ट के निमित्त से अचानक इष्ट-सिद्धि देख कर वह अत्यन्त प्रसन्न हुई । इतने में राजकुमारी की खोज करने वाले सैनिकों के साथ उसके पिता अमृतसेन नरेश वहाँ आ पहुँचे । अपनी पुत्री के साथ इच्छित जामाता पा कर वे भी हर्षित हुए। पुत्री का अपहरण करने वाले सूरकाँत को क्षमा कर अभयदान दिया गया और राजा ने रत्नमाला का विवाह अपराजित के साथ कर दिया । सूरकान्त ने अपने रक्षक अपराजित को अपनी वह प्रभावशाली मणि और मूलिका भेंट की और मन्त्रीपुत्र को रूप परिवर्तन करने वाली गुटिका दी । राजकुमार ने अपने श्वशुर अमृतसेन नरेश से निवेदन किया-
" मैं अभी प्रवास में हूँ। जब में स्वस्थान पहुँचू, तब आपकी पुत्री को बुला लूंगा । इतने यह आप ही के पास रहेगी ।" दोनों मित्र वहाँ से आगे चले ।
आगे चलते हुए उन्होंने एक विशाल वन में प्रवेश किया । राजकुमार को बहुत जोर की प्यास लग रही थी । वह एक आम्रवृक्ष की छाया में बैठा और विमलबोध पानी की खाज करने के लिए चला । वह जल ले कर लौटा, तो उस आम्रवृक्ष के नीचे अपराजित को नहीं देख कर क्षुब्ध हो गया और सोचने लगा--" क्या में ही वह स्थान भूल कर दूसरे स्थान पर आया, या अपराजित ही प्यास से पीड़ित हो कर पानी की खोज में कहीं चला गया ?" वह इधर-उधर भटक कर राजकुमार को खोजने लगा । अन्त में हताश एवं थकित होने के कारण वह मूच्छित हो कर भूमि पर गिर पड़ा। आतंक का शमन हो जाने पर वह सचेत हुआ और कुमार के वियोग में रोने लगा तथा कुमार को सम्बोधन कर पुकारने लगा । वह यह तो समझता था कि कुमार को क्षति पहुँचाने योग्य कोई
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