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भ० अरिष्टनेमिजी--पूर्वभव
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राजा ने पुत्र को रोका और अपनी निवृत्ति में साधक बनने का आग्रह किया। फिर आज्ञापूर्वक राज्याभिषेक कर दीक्षित हो गया। सुमित्र राजा ने अपते सौतेले भाई पद्म को कुछ ग्राम दे कर उसे संतुष्ट करने का प्रयत्न किया, किन्तु वह दुविनीत, असंतुष्ट एवं अशान्त ही रहा और वहाँ से कहीं अन्यत्र चला गया।
सुमित्र राजा की बहिन कलिंग देश के नरेश को ब्याही थी उसे राजा अनंगसिंह का पुत्र और रत्नवती का भाई कमल, हरण कर के ले गया। अपनी बहिन के हरण से सुमित्र दुखी है । ये समाचार राजकुमार चित्रगति ने सुने । उन्होंने सुमित्र को सन्देश भेजा'आपकी बहिन को खोज कर के लाउँगा । आप धैर्य रखें ।" चित्रगति ने पता लगाया, उसे ज्ञात हुआ कि कमलकुमार ने उसका हरण किया है । चित्रगति ने सेना ले कर शिवमन्दिर नगर पर धावा कर दिया और प्रथम भिडंत में ही कमलकुमार को पराजित कर दिया। पुत्र की पराजय से राजा अनंगसिंह भड़का और स्वयं सेना सहित युद्ध करने लगा। युद्ध की भयंकरता बढ़ी । घोर युद्ध होने लगा। बहुत काल तक युद्ध करने पर भी चित्रगति पराजित नहीं हो सका, तो अनंगसिंह चिन्तित हो गया । उसे अपने शत्रु की शक्ति का अनुमान नहीं था। उसने अंतिम और अचूक प्रयास स्वरूप, देव-प्रदत खड्ग ग्रहण किया, जिसमें से सैकड़ों ज्वालाएँ निकल रही थी। राजकुमार चित्रगति ने विद्या के बल से घोर अन्धकार फैला दिया और उस अन्धकार में ही अनंगसिंह राजा के हाथ से वह खड्ग छिन लिया और सुमित्र की बहिन को ले कर चला गया। थोड़ी ही देर में अन्धकार मिट कर प्रकाश हो गया। जब अनंगसिंह ने देखा कि न तो हाथ में खड्ग है और न सामने शत्रु ही है, वह चिन्तित हो गया। किंतु उसकी चिन्ता, प्रसन्नता में परिवर्तित हो गई । उचे भविष्यवेत्ता की भविष्यवाणी का स्मरण हुआ । उसे विश्वास हुआ कि खड्ग छिनने वाला ही मेरा जामाता बनेगा । अब प्रश्न यह था कि वह राजकुमार कौन था और कहाँ का था ? उसका पता कैसे लगाय जाय ? उसे फिर स्मरण हुआ कि उस राजकुमार पर देवता पुष्पवर्षा करेंगे, तब पता लग जायगा ।
चित्रगति, शीलवती सती को ले कर सुमित्र के पास पहुँचा । बहिन के अपहरण से सुमित्र संसार से उदासीन हो चुका था । बहिन के प्राप्त होते ही उसने तत्काल पुत्र का राज्याभिषेक किया और स्वयं सर्वज्ञ भगवान् सुयशजी के पास प्रवजित हो गया और ज्ञानाभ्यास से उन्होंने कुछ कम नौ पूर्व का अभ्यास कर लिया। फिर उन्होंने एकलविहार प्रतिमा धारण की और विचरते हुए मगध देश में आये । एक गांव के बाहर वे कायुत्सर्ग कर खड़े हो गए। उसी समय उनका सौतेला भाई पद्म, कहीं से भटकता हुआ वहां आ पहुंचा
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