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भ० अरिष्टनेमिजी
पूर्वभव
इसी जम्बूद्वीप के भरत-क्षेत्र में अचलपुर नाम का महानगर था। महापराक्रमी विक्रमधन नरेश का वहाँ शासन था। उसके प्रताप से चारों ओर के राज्य प्रभावित थे। वह दुष्टों का दमन और सज्जनों का पोषण करने वाला, न्यायप्रिय शासक था। सम्पत्ति एवं कीर्ति से वह समृद्ध था। सद्गुण, सुलक्षण एवं सौन्दर्य सम्पन्न धारणीदेवी उसकी रानी थी। रात्रि के अंतिम पहर में रानी ने स्वप्न में एक आम्रवृक्ष देखा, जिसमें मंजरियों के गच्छे निकले हए हैं। भ्रमर मत्त हो कर गजारव कर रहे हैं और कोकिला आनन्दित हो कर कूक रही है । महारानी उस आम्रवृक्ष में फल लगते देख रही थी कि उस वृक्ष को हाथ में लेकर किसी रूपसम्पन्न पुरुष ने रानी से कहा--" यह वृक्ष आज तुम्हारे आँगन में लगाया जायगा । काल-क्रम से यह उत्कृष्ट फल देता हुआ नौ बार पृथक् आँगन में लगता रहेगा।" रानी जाग्रत हुई और स्वप्न की बात पति से निवेदन की । राजा ने स्वप्न-शास्त्र विशारदों से फल पूछा । फलादेश बतलाते हुए पण्डितों ने कहा
“राजन ! यह तो निश्चित-सा है कि आपके यहाँ एक उत्कृष्ट भाग्यशाली आत्मा, पुत्र के रूप में उत्पन्न होगी, किंतु हम यह नहीं समझ सके कि वृक्ष के विभिन्न स्थानों पर आरोपण का क्या फल होगा।"
स्वप्नफल सुन कर महारानी बहुत प्रसन्न हूई । गर्भकाल पूर्ण होने पर एक पुण्यात्मा बालक का जन्म हुआ। पुत्र का 'धनकुमार' नाम दिया गया ।
कुसुमपुर के सिंह नरेश को विमला रानी की कुक्षी से पुत्री का जन्म हुआ। 'धनवती' उसका नाम था। वह अनुपम सुन्दरी एवं सद्गुणों की खान थी। यौवनावस्था
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