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________________ २५० तीर्थकर चरित्र में वह अपनी सखियों के साथ उद्यान में वनक्रीड़ा के लिए गई । वसंतऋतु के प्रभाव से उद्यान की शोभा पूर्ण रूप से विकसित हो चुकी थी । सुन्दर एवं सुगंधित पुष्पों से सारा उपवन सुरभित हो रहा था । भ्रमरगण अपनी तान अलाप रहे थे, सारस पक्षियों के युगल अपनी सुरिली ध्वनि से आनन्दानुभूति व्यक्त कर रहे थे। स्वच्छ जल से परिपूर्ण तालाब में हंसों का समह क्रीडा कर रहा था और उद्यान-पालक की पत्नियां का मधुर गान, कर्णगोचर हो रहा था। उस मनोहर उद्यान में राजकुमारी अपनी सहेलियों के साथ सुखानुभव करती हुई विचर रही थी । हठात् उसकी दृष्टि अशोक वृक्ष के नीचे खड़े हुए एक पुरुष पर पड़ी । वह हाथों में एक पट लिए कुछ लिख रहा था। राजकुमारी की सखी कमलिनी उसके पास पहुँची और झपट कर उसका वह पट छिन लिया। वह चित्रकार था। उसके चित्रपटों में एक उत्कृष्ट स्वरूपवान् पुरुष-प्रवर का भी चित्र था। उस चित्र को देख कर कमलिनी ने पूछा:--- "यह चित्र किसी साक्षात् पुरुष-श्रेष्ठ का है, या आपने अपनी कल्पना एवं कला का उत्कृष्ट परिचय दिया है ?" ___“यह कल्पना का सर्जन नहीं, साक्षात् के यथार्थ का लघु चित्रण है"-चित्रकार ने कहा। "यह पुरुषश्रेष्ठ कौन है ? किस पुण्यभूमि को सुशोभित कर रहा है"--सखी का प्रश्न । "भद्रे ! अचलपुर के युवराज धनकुमार का यह चित्र है । यदि कोई उस अलौकिक महापुरुष को देख कर, फिर मेरे चित्र को देखे, तो मेरी निन्दा किये बिना नहीं रहे, क्योंकि मैं उनके उत्कृष्ट सौन्दर्य का पूर्णरूप से आलेखन करने में समर्थ नहीं हूँ। यदि तुम युवराज को साक्षात् देख लो, तो तुम स्वयं आश्चर्य करने लगो। जिनका रूप देख कर देवांगना भी मोहित हो सकती है, उनके अलौकिक रूप का पूर्णरूप से आलेखन कोई मनुष्य कैसे कर सकता है"--चित्रकार बोला । ___महाशय ! आपका कथन यथार्थ होगा, फिर भी वह चित्रकला का उत्कृष्ट नमूना है। आप निपुण हैं, दक्ष हैं और उत्कृष्ट कलाकार हैं"-युवती चित्रकार की प्रशंसा करने लगी। राजकुमारी पर उस चित्र का गंभीर प्रभाव पड़ा । वह उसीके ध्यान में मग्न हो गई । उसके मन में धनकुमार बस गया। वह उसी चिन्ता में लीन हो गई । अब उसे वह सुन्दर एवं सुखद वातावरण भी अप्रिय लगने लगा। उसका मन धनकुमार से मिलने के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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