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धर्म देशना--श्रावक के कत्र्तव्य
श्रावक को चाहिए कि : माद का त्याग कर के मन, वचन और काया से धर्म विषयक चेष्टा (मन से धर्म विषयक विचारणा, चिन्तन, स्मरण, वचन से स्तुति, परावर्तनादि, कया से कायोत्सर्ग नमस्कार और आस्रव से विरति) में ही रात्रि व्यतीत करे और ब्र -महत (सूर्योदय से पूर्व दो घड़ी तक का समय) में उठ कर परमेष्ठि मन्त्र का स्मरण करता हुआ विचार करे कि--मेरा धर्म क्या है, में किस कुल का हूँ, मेरे व्रत कौन-से हैं 1 ? इस प्रकार विचार कर के फिर यथाशक्ति प्रत्याख्यान करना चाहिए। इसके बाद साधु-साध्वी हों, तो उनके समीप जा कर वदना, नमस्कार करना चाहिए और प्रत्याख्यान में वृद्धि करनी चाहिए।
___ गुरु के दर्शन होते ही खड़ा होना, अपना आसन छोड़ देना, उनके आने पर सामने जाना, हाथ जोड़ कर मस्तक पर लगाना और गुरु के आसन पर बैठते ही भक्तिपूर्वक पर्युपासना करना । गुरु के जाने पर उन्हें आदरपूर्वक पहुँचाने के लिए कुछ दूर तक पीछेपीछे जाना । इस प्रकार करने से गुरु महाराज की भक्ति होती है । इसके बाद अपने घर जाना और अर्थचिन्तन - (व्यापारादि आजीविका का कार्य करना पड़े, तो धर्म का विरोध नहीं हो जाय, इसकी सावधानी रखना । फिर मध्यान्ह के समय धर्मध्यान करना । इसके बाद शास्त्रवेत्त'ओं के समक्ष बैठ कर शास्त्रों का रहस्य समझने का प्रयास करना और संध्या को प्रतिक्रमण करना । इसके बाद उत्तम रीति से स्वाध्याय और ध्यान करना। रात के समय देव-गुरु और धर्म का स्मरण कर के अल्प निद्रा लेना और प्रायः ब्रह्मचर्य से रहना । यदि मध्य में निद्रा भंग हो जाय, तो स्त्री के अंगों को घृणितता का विचार करना। स्त्री का शरीर विष्ठा, मूत्र, मल, श्लेष्म, मज्जा और अस्थि से भरपूर है। इसी प्रकार स्नायु से सी हुई चर्म की थैली रूप है । यदि स्त्री के शरीर के बाह्य और आभ्यन्तर स्वरूप का परावर्तन करने में आवे अर्थात् ऊपरी भाग भीतर हो जाय और भीतर का हिस्सा ऊपर आ जाय, तो प्रत्येक कामी-पुरुष को उन शरीर का गिद्ध, सियाल एवं कुत्ते आदि से रक्षण करना कठिन हो जाय ।
यदि कामदेव, स्त्री रूपी शस्त्र से इन जगत् को जीतना चाहता हो, तो वह मूढ़मति हलकी कोटि के शस्त्र का उपयोग क्यों नहीं करता (?) आश्चर्य है कि संकल्प
+ यहां राइ प्रतिक्रमण का विधान भी होना था।
* 'अर्थ-चिन्तन करना' ये शब्द हमारी दष्टि में सावध व्यापार की अनुज्ञा रूप हैं। इसके स्थान पर- 'यदि विवशता पूर्वक अप्राप्ति का प्रयत्न करना पड़े, तो न्याय । पीति और विरति तथा धर्म के लिए बाधक हो--ऐसा कार्य नहीं करना"-उचित लगता है।
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