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लवण और अंकुश के पूर्वभव
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बनूंगी।" राजा के पाश से मुक्त हो कर वेगवती ने हरिकान्ता नाम को साध्वीजी से प्रव्रज्या स्वीकार की । चारित्र का पालन कर वह ब्रह्म-देवलोक में गई । वहाँ से च्यव कर जनक नरेश की पुत्री सीता हुई और शंभु राजा के जीव रावण की मृत्यु को कारण बनी। सुदर्शन मुनि पर मिथ्या दोषारोपण करने से इस भव में सीता पर मिथ्या कलंक आया।
शंभु राजा का जीव भव-भ्रमण कर के कुशध्वज ब्राह्मण की पत्नी सावित्री की उदर से प्रभास नाम वाला पुत्र हुआ। उसने मुनि विजयसेनजी के पास निग्रंथ-दीक्षा ग्रहण की और संयमपूर्वक उग्र तप करने लगा। एक बार इन्द्र के समान प्रभावशाली विद्याधर नरेश कनकप्रभ को देख कर प्रभास मुनि ने समृद्धिशाली नरेश होने का निदान कर लिया और मृत्यु पा कर तीसरे देवलोक में उतन्न हुए और वहां से च्यव कर राक्षसाधिपति रावण हुए । याज्ञवल्क्य (जो धनदत्त और वसुदत्त का मित्र था ) भव-भ्रमण करते हुए तुम विभीषण हुए । आज भी तुम्हारी वह पूर्व-भव की मित्रता कायम रही।
श्रीपति (जिसे राजा शंभु ने मार डाला था ) स्वर्ग च्यव कर सुप्रतिष्ठपुर में पुनर्वसु नाम का विद्याधर हुआ। उसने कामातुर हो कर पुंडरीक विजय के चक्रवर्ती सम्राट की पुत्री अनंगसुन्दरी का हरण किया। चक्रवर्ती के विद्याधरों से आकाश में युद्ध करते समय अनंगसुन्दरी घबड़ा गई और विमान में से गिर कर लतागृह पर पड़ी। वह वन में अकेली भटकने लगी। अचानक एक अजगर ने उसे निगल लिया और समाधिपूर्वक मृत्यु पा कर देवलोक में गई। वहाँ से च्यव कर वह विशल्या (लक्ष्मणजी की पत्नी) हुई । अनंगसुन्दरी के विरह में पुनर्वसु ने दीक्षा ली और निदान करके देवलोक में गया । वहाँ से च्यव कर दशरथजी के पुत्र लक्ष्मणजी हुए ।
गुणवती का भाई गुण धर भी जन्ममरण करता कुडलमंडित नामक राजपुत्र हुआ और चिरकाल श्रावक व्रत पालन कर के सीता का भाई भामण्डल हुआ ।
लवण और अंकुश के पूर्वभव
.. काकंदी नगरी के वामदेव ब्राह्मण के वसुनन्द और सुनन्द नाम के दो पुत्र थे । एक बार उन दोनों भाइयों के माता-पिता कहीं अन्यत्र गये हुए थे, ऐसे समय उनके घर एक मासोपवासी तपस्वी महात्मा पधारे, जिन्हें दोनों बन्धुओं ने भक्तिपूर्वक आहार दिया।
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