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राम का भविष्य xx रावण सीता और लक्ष्मणादि का पूर्व-सम्बन्ध
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हुआ। वहां से च्यव कर वह महापुर नगर में एक सेठ का पद्मरुचि नाम का पुत्र हुआ। वह यहाँ भी श्रावक के व्रतों का पालन करने लगा । एकबार वह घोड़े पर सवार हो कर गोकुल की ओर जा रहा था। मार्ग में उसने एक बुड्ढे बैल को तड़प कर मरते हुए देखा। वह तत्काल घोड़े पर से नीचे उतरा और उस बैल के कान में नमस्कार मन्त्र का उच्चारण करने लगा। नमस्कार मन्त्र का श्रवण करता हुआ बैल मृत्यु पा कर उसी नगर में राजा के पुत्रपने उत्पन्न हुआ। उसका नाम वृषभध्वज रखा । बड़ा होने पर राजकुमार इधर-उधर घुमता हुआ उस स्थान पर पहुंचा--जहाँ वह बल मरा था । वह स्थान उसे परिचित लगा। वह सोचने लगा। सोचते-सोचते उसे जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हो गया। उसने उस स्थान पर एक देवालय बनाया और उसकी भींत पर वृद्ध वृषभ की मरणासन्न दशा और पद्मरुचि द्वारा दिया जाता धर्म-सहाय्य आदि का चित्रण कराया। इसके बाद उस देवालय पर रक्षक रख कर उन्हें आज्ञा दी कि--“यदि कोई मनुष्य इन चित्रों का रहस्य जानता हो, तो उसकी सूचना मुझे दी जाय।" कालान्तर में वह पदमरुचि सेठ उस देवालय में आया और भीत्ति पर आलेखित चित्रावली देख कर विस्मित हो कर बोला--"ये चित्र तो मुझसे ही सम्बन्ध रखते हैं।" देवालय के रक्षक ने पद्मरुचि की बात सुन कर तत्काल राजकुमार को निवेदन किया । राजकुमार उसी समय चल कर मन्दिर पर आया और पदमरुचि से मिल कर बहुत प्रसन्न हुआ। राजकुमार ने पद्मरुचि से चित्र का वृत्तांत पूछा । पद्मरुचि ने कहा--"महानुभाव ! इस चित्र में जिस घटना का चित्रण हुआ है, वह मुझ-से सम्बन्ध रखती है । वृद्ध एवं मरणासन्न वृषभ को नमस्कारमन्त्र सुनाने वाला में ही हूँ। इस घटना को जानने वाले किसी ने यह चित्र बनाया होगा।"
____ “भद्र ! वह वृद्ध बैल मैं ही हूँ। आपने कृपा कर मुझे नमस्कार-महामन्त्र का सबल संबल प्रदान किया था। उसीके प्रभाव से मैं वर्तमान अवस्था को पहुँचा हूँ। आप मेरे उपकारी हैं। यदि आपकी कृपा नहीं होती, तो मेरी दुर्गति होती । आप मेरे देव हैं, गुरु हैं, स्वामी हैं । मेरा यह विशाल राज्य आपके अर्पण हैं।"
इस प्रकार भक्ति व्यक्त की और श्रावक व्रतों का पालन करते हुए वह पद्मरुचि के साथ अभेद रह कर धर्म की आराधना करने लगा और काल कर के दोनों ईशान देवलोक में महद्धिक देव हुए। देवलोक से च्यव कर पद्मरुचि तो मेरु पर्वत के पश्चिम में वैताढ्य गिरि पर, नन्दावर्त नगर में नन्दीश्वर नाम के राजा का पुत्र हुआ । उसका नाम नयानन्द रखा गया । वहाँ राज्य-सुख का त्याग कर प्रव्रज्या ग्रहण की और संयम का पालन कर, चौथे स्वर्ग में देव हुआ। देवभव पूर्ण कर के विदेह में क्षेमापुरी नगरी के राजा विपुल
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